Book Title: Shrutsagar 2015 01 02 Volume 01 08 09
Author(s): Hiren K Doshi
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba

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Page 74
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org 72 SHRUTSAGAR January-February-2015 में भी इस लिपि में निबद्ध पाण्डुलिपियाँ संग्रहीत हैं। इससे पता चलता है कि यह लिपि अपने समय में कितनी प्रामाणिकता के साथ प्रचलित रही होगी । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विविध प्राचीन लिपियों, विशेषतः नागरी के इतिहास की खोज करने से प्राचीन भारतीय सांस्कृतिक इतिहास का संकलन हो सकता है। यद्यपि प्रागैतिहासिक काल की खोज करने में सबसे बडी कठिनता प्राचीन सामग्री का अभाव है। बहुत कुछ सामग्री काल-कवलित हो गई है। प्राचीन पुस्तकालय आदि, विध्वंसकारियों द्वारा नष्ट हो चुके हैं।' अनेक शिलालेख अज्ञानतावश दीवारों में चुने जाने के कारण शहीद होते जा रहे हैं; अथवा खुदे होने के कारण सिलबट्टे का रूप धारण करके छोटी-मोटी वस्तुओं (चटनी, मसाले आदि) को पीस रहे हैं । ताम्रपत्रों ने बर्तनों का रूप धरण कर लिया है और नित्य-प्रति कहारियों के कठोर हाथों की चोट खाते-खाते अपनी उपयोगिता खो बैठे हैं। सोने-चाँदी के सिक्के सुन्दरियों अंग का आभूषण बनकर उनकी शोभा में चारचाँद लगा रहे हैं; तदपि धरती माता ने अनेक खंडहर, शिलालेख, ताम्रपत्र आदि बहुत-से रत्न अपने गर्भ में छिपा रखे हैं जो प्राचीन स्मारक- रक्षा विभाग एवं श्रुतरक्षकों के प्रयत्नों के फलस्वरूप समय-समय पर हमारे सम्मुख आते रहते हैं । इनका योग्य संरक्षण एवं संपादन कर प्रकाश में लाने की महती आवश्यकता है। यद्यपि राष्ट्रीय पाण्डुलिपि मिशन नई दिल्ली द्वारा भारत के विविध शिक्षाकेन्द्रों में समय-समय पर आयोजित होनेवाली 'पाण्डुलिपि एवं पुरालिपि अध्ययन कार्यशालाओं' के माध्यम से ब्राह्मी, शारदा, ग्रंथ आदि प्राचीन लिपियों के साथसाथ इस लिपि को भी जीवित रखने के प्रयास किये जा रहे हैं, जो सराहनीय है। विगत कुछ वर्षों से ऐसा ही प्रयास श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र-कोबा, एवं अहमदाबाद स्थित गुजरात विश्वकोश ट्रस्ट, भोलाभाई जेशींगभाई भारतीय संस्कृति विद्यामंदिर एवं लालभाई दलपतभाई भारतीय संस्कृति विद्यामंदिर आदि शैक्षणिक संस्थान कर रहे हैं। इन संस्थानों में पाण्डुलिपि एवं पुरालिपि अध्ययन हेतु समयसमय पर कार्यशालाओं का आयोजन किया जाता है। जिसे इस क्षेत्र में एक क्रान्तिकारी कदम कहा जा सकता है। इस कार्य में यदि और भी शिक्षण संस्थाएँ एवं समाजसेवी विद्वान मिलकर आगे आयें तो भारतीय श्रुतपरंपरा को सदियों तक जीवित रखनेवाली इस पुरातन धरोहर को लुप्त होने से बचाया जा सकता है। १. नालंदा विश्वविद्यालय के रत्नोदधि, रत्नसागर, रत्नरञ्जक नामक तीन विशाल ग्रन्थागारों को बख्तियार खिलजी द्वारा जलाकर नष्ट कर दिया गया; जहाँ लाखों महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ राख के ढेर में तब्दील हो गये। इन ग्रन्थागारों से वर्षों तक धुआँ निकलता हुआ देखा गया । For Private and Personal Use Only

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