Book Title: Shrutsagar 2015 01 02 Volume 01 08 09
Author(s): Hiren K Doshi
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba

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Page 67
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 65 श्रुतसागर जनवरी-फरवरी - २०१५ नागरी लिपि में संयुक्ताक्षरों की स्थिति प्राचीन नागरी लिपिबद्ध पाण्डुलिपियों में मिलनेवाले संयुक्ताक्षरों का ज्ञान संपादनकार्य में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करता है। विदित हो कि इस लिपि में कुछ अक्षर ऐसे हैं जो दूसरे वर्गों के साथ जुडनेपर पूर्णतः परिवर्तित हो जाते हैं और अन्य वर्गों का भ्रम भी उत्पन्न करते हैं। उस परिवर्तित स्वरूप का ज्ञान यदि न हो तो अनेकविध अशुद्धियाँ होने की संभावना बढ़ जाती है। इन संयुक्त अक्षरों में विशेषकर 'ज्ज' जो कि 'ज्झ' का भ्रम करता है। 'क्ख' जो कि 'रक', 'रवु' या 'खु' का भ्रम करता है। 'ओ' जो कि 'उ' वर्ण को रद्द (डीलिट) करने अथवा 'न' वर्ण का भ्रम करता है। 'ऋ' वर्ण 'क्ष' या 'कृ' का भ्रम करता है। यदि 'ग' वर्ण में 'ए' की अग्रमात्रा लगाकर 'गे' लिखा हो तो अग्रमात्रा के कारण 'ण' या 'ऐ' वर्गों का भ्रम करता है। 'थ' वर्ण 'व्व' एवं 'घ' का भ्रम करता है। 'श' वर्ण 'त्र' या 'ऋ' का भ्रम करता है। 'च्छ' वर्ण 'त्थ' का भ्रम उत्पन्न करता है। यथा ब- पहा का भ्रम उत्पन्न करता है) ख- (रक, रखु या खुका.प्रम उत्पन्न करता है) ओ-7 ('उ' वर्ण अथवा 'न' वर्ण का भ्रम उत्पन्न करता है) ऋ- र म' या 'कृ' वर्गका प्रम उत्पन्न करता है) मे= (अग्रमात्रा के कारण 'ग' अथवा 'ऐ वर्ष का भ्रम उत्पन्न करता है। (गवथवा ग वर्गों का प्रम उत्पन्न करता है। (ऐ अथवा गे वर्षों का भ्रम उत्पन्न करता है। (व्व का प्रम उत्पन्न करता है। शवा ( अथवा 'ऋका प्रम उत्पन्न करता है। (त्य' का प्रम उत्पन्न करता है। For Private and Personal Use Only

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