Book Title: Shrutsagar 2015 01 02 Volume 01 08 09
Author(s): Hiren K Doshi
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba

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Page 68
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 66 SHRUTSAGAR January-February - 2015 विदित हो कि 'छ' वर्ण के साथ जब 'च' वर्ण जुडता है तो उसे 'च्छ' पढा जाता है, लेकिन जब उसी 'छ' वर्ण के साथ 'त्' वर्ण जुडता है तो 'छ' वर्ण 'थ' में परिवर्तित हो जाता है और संयुक्ताक्षर 'त्थ' पढा जाता है। यदि उसी 'छ' वर्ण के साथ 'स्' वर्ण जुडता है तो उसे 'स्थ' पढा जाता है, और यदि 'छ' वर्ण दो पूर्णविरामों के मध्य || || इस प्रकार लिखा हो तो उसे गाथा, श्लोक, अध्याय अथवा ग्रंथ-पूरक या विषय समाप्ति सूचक चिह्न के रूप में पढ़ा जाता है। ऐसा ही एक वर्ण |ळ।। है जो ग्रंथ समाप्ति अथवा अध्याय या पाठ की समाप्ति का द्योतक है। यह अंतिम मंगल सूचक चिह्न के रूप में भी प्रयुक्त होता है। यथा euad ॥ब (पूरक या समातिसूचक चिह्न) इसी प्रकार जब 'प' वर्ण के साथ "भ' वर्ण जुडता है तो उसे 'म' पढा जाता है। तथा मूर्धन्य 'ष' के साथ जब 'भ' वर्ण जुडता है तो 'ज्झ' पढा जाता है। यथा प+म- पूनम ष् + = ज्म = + नस ऐसे और भी कई वर्ण हैं जो संयुक्त होने पर अपना स्वरूप बदल लेते हैं . और संपादक को भ्रमित करते हैं। अतः ऐसे वर्णों की एक तालिका यहाँ संलग्न की जा रही है : For Private and Personal Use Only

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