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SHRUTSAGAR
January-February-2015
हुआ जिसके परिणामस्वरूप संयुक्ताक्षर एक शिरोरेखा के नीचे प्रथम अक्षर आधा तथा द्वितीय अक्षर पूरा क्रमशः आगे-पीछे लिखे जाने लगे, जो आधुनिक नागरी लिपि में आज भी प्रचलित है ।
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* इस लिपि का ज्ञान प्राचीन पाण्डुलिपियों को सरलतापूर्वक पढने, लिप्यन्तर करने, प्रतिलिपि करने एवं ऐतिहासिक तथ्यों को जानने में अतीव सहायक सिद्ध होता है ।
इस लिपि में निबद्ध श्रुतसंपदा विपुल मात्रा में प्राप्त होती है, जो गवेषकों की जिज्ञासा पूर्ण करने, ऐतिहासिक तथ्यों को जानने तथा ग्रन्थों के समीक्षात्मक संपादन हेतु प्रमुख स्रोतस्वरूप है।
* यह लिपि जहाँ संस्कृत - प्राकृत-पालि जैसी प्राचीन भाषाओं की सफल लिपि रही है, वहीं यह हिन्दी, मराठी, नेपाली आदि कतिपय आधुनिक भाषाओं की भी सफल वाहिका है ।
* इस लिपि में उपरोक्त विविध भाषाबद्ध साहित्य को शतप्रतिशत शुद्ध लिखने की क्षमता विद्यमान है। एक प्रकार से देखें तो ये समस्त भाषाएँ इस लिपि पर आधारित सी दिखाई देती हैं।
इस लिपि में जैसा लिखा जाता है वह वैसा ही संशय रहित, निश्चयपूर्वक पढा जाता है। अतः इसकी वर्णमाला पूर्णतः वैज्ञानिक एवं श्रेष्ठ है।
* इसमें प्रत्येक ध्वनि के लिए अलग-अलग ऐसे स्वतन्त्र वर्ण हैं, जिनमें परस्पर भ्रम की कोई संभावना नहीं रहती ।
* उत्तरी भारत की आधुनिक लिपि, दक्षिणी भारत की द्राविड लिपि तथा भारत के पार्श्ववर्ती देशों की लिपियों का नागरी से बहुत कुछ सादृश्य है। इन सब ..में वर्णमाला, स्वर- व्यंजन भेद, स्वर- क्रम, व्यंजनों का वर्गीकरण, मात्रा - नियम आदि सब लगभग समान ही हैं, किसी में दो-एक ध्वनियाँ कम हैं तो किसी में अधिक ।
* इस लिपि में संसार की समस्त उपलब्ध लिपियों की अपेक्षा अधिक वर्ण हैं । अतः किसी भी भाषा में उच्चारित प्रत्येक शब्द को इस लिपि के स्वतन्त्र वर्ण द्वारा लिपिबद्ध किया जा सकता है।
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