Book Title: Shrutsagar 2015 01 02 Volume 01 08 09
Author(s): Hiren K Doshi
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba

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Page 54
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir SHRUTSAGAR 52 January-February - 2015 समस्त जैन आगम साहित्य को इस लिपि में निबद्ध करने का निर्णय लिया गया। अतः नागरी लिपि में प्राकृत-भाषा-सम्मत लिपिचिह्नों एवं कुछ विशिष्ट संयुक्ताक्षरों का समावेश कर इस लिपि में समस्त जैन साहित्य लिपिबद्ध किया गया। संभवतः इसी कारण इस लिपि को जैन नागरी के नाम से संबोधित किया जाने लगा। अस्त! नागरी लिपि के नाम स्थापन विषयक ये सभी मत केवल अनुमान एवं तद्विषयक चिन्तन पर आधारित हैं, जो शोध का विषय है। इनमें से किसे प्रामाणिक माना जाय और किसे नहीं; यह निश्चित कर पाना गवेषकों के लिए एक पहेली बना हुआ है। . नागरी लिपि की विशेषताएँ * यह लिपि ब्राह्मी, शारदा, ग्रंथ एवं अन्य भारतीय लिपियों की तरह ही बायें से दायें लिखी जाती है। * इस लिपि में लिखित प्राचीन ग्रन्थसंपदा सर्वाधिक मात्रा में प्राप्त होती है। अतः इसे भारतीय श्रुतसंपदा को अद्यावधिपर्यन्त जीवित रखने का गौरव प्राप्त है। * इस लिपि में किसी भी भाषा को शतप्रतिशत शुद्ध लिखा जा सकता है। * यह लेखन एवं वाचन दोनों ही दृष्टियों से सरल एवं सुगम लिपि है। * इसका रूप अत्यन्त नेत्राकर्षक एवं त्वरा लेखन के अनुकूल है। * राष्ट्र का प्राचीनतम वैभवशाली वाङ्मय इसी लिपि में लिपिबद्ध है। * कागज पर कलम एवं स्याही द्वारा लिखने के लिए यह लिपि सर्वाधिक श्रेष्ठ, उपयोगी, सरल और सटीक लिपि मानी गई है। * इसमें खडी पाई तथा पडी पाई के साथ शिरोरेखा का विशेषरूप से चलन है, जबकि ब्राह्मी लिपि में शिरोरेखा का चलन नहीं है। गुजराती लिपि भी शिरोरेखा के बिना ही लिखी जाती है। * इस लिपि में समस्त उच्चारित ध्वनियों के लिए स्वतन्त्र एवं असंदिग्ध लिपि चिह्न विद्यमान हैं। अतः इसे पूर्णतः वैज्ञानिक लिपि कहा जा सकता है। * यह लिपि अपने समय की श्रेष्ठ लिपि होने के कारण तत्कालीन ग्रन्थकारों एवं लहियाओं ने इसे लेखन हेतु सर्वाधिक आश्रय प्रदान किया। For Private and Personal Use Only

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