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प्राचीन नागरी लिपि : एक अध्ययन
डॉ. उत्तमसिंह नागरी लिपि हिंदुस्तान की पुरातन लिपियों में से एक है। इसका उदभव लगभग आठवी-नवमी सदी में ब्राह्मी लिपि से हुआ। विदित हो कि हिंदुस्तान की समस्त लिपियाँ ब्राह्मी लिपि से ही निःसृत हुई हैं; अतः ब्राह्मी को समस्त लिपियों की जननी कहा गया है।
कालान्तर में ब्राह्मी लिपि के दो प्रवाह हुए१. उत्तरी ब्राह्मी तथा २. दक्षिणी ब्राह्मी।
उत्तरी ब्राह्मी से गुप्त एवं कुटिल लिपि सहित शारदा, गुरुमुखी, टाकरी, प्राचीन नागरी, मैथिली, नेवारी, बंगला, उडिया, कैथी, गुजराती आदि विविध लिपियों का विकास हुआ । जबकि दक्षिणी ब्राह्मी से दक्षिण भारत की मध्यकालीन तथा आधुनिक कालीन लिपियाँ अर्थात् तामिळ, तेलुगु, मळयाळम, ग्रंथ, कन्नडी, तुळु, नंदीनागरी, पश्चिमी तथा मध्यप्रदेशी आदि विविध लिपियों का विकास हुआ।
लगभग नवमी सदी के पूर्वार्ध में एक ओर दक्षिणी भारत में ग्रंथ लिपि' से नंदीनागरी लिपि का उद्भव हुआ तो दूसरी ओर उसी समय उत्तरी भारत में कुटिल एवं शारदा लिपियों से नागरी लिपि का उदय हुआ। यह लिपि अपनी विशेषताओं के कारण एक समर्थ एवं पूर्णतः वैज्ञानिक लिपि के रूप में विकसित होने लगी और देखते ही देखते समग्र उत्तर-मध्य भारत में फैल गई। विविध भाषाओं में निबद्ध साहित्य को इस लिपि में लिपिबद्ध किया जाने लगा। संस्कृतप्राकृत-पालि-हिंदी-मराठी-नेपाली आदि भाषाओं ने तो जैसे ईस लिपि को अपने वाहक के रूप में अपना लिया। आज भी ये भाषाएँ इस लिपि पर आधारित-सी दिखाई पड़ती हैं; जो इसके पूर्णतः वैज्ञानिक लिपि होने का स्पष्ट प्रमाण है।
कालान्तर में यह लिपि उत्तरी भारत के प्रत्येक नगर, शहर, गाँव-गाँव में खूब फलने-फूलने लगी। संपूर्ण संस्कृत-प्राकृत-पालि आदि भाषाबद्ध साहित्य इस १. श्रुतसागर, अंक-३८-३९: (ब्राह्मी लिपि : एक अध्ययन), मार्च-अप्रेल २०१४. २. श्रुतसागर, अंक- ०२, (ग्रंथ लिपि : एक अध्ययन), जुलाई-२०१४. ३. इस लिपि का प्राचीनतम रूप कन्नौज के प्रतिहारवंशी राजा महेन्द्रपाल प्रथम
(वि.सं. ९१४ ई.) के एक दानपत्र में मिलता है।
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