Book Title: Shrutsagar 2015 01 02 Volume 01 08 09
Author(s): Hiren K Doshi
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba

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Page 61
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रुतसागर 59 जनवरी-फरवरी - २०१५ मात्रा लेखन प्रक्रिया इस लिपि में मात्रा लेखन हेतु विशेषतः निम्नोक्त चिह्नों का प्रयोग हुआ है - - - 7 |-747 ल ता इनमें से आ, इ, ई, ऋ की मात्राएँ तो आधुनिक नागरी में भी लगभग ज्योंकी-त्यों प्रयुक्त हुई हैं; लेकिन उ, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ की मात्राओं में विविधता दिखाई पड़ती है। यथा क क | का कि की क क क क क के का को कं | का विदित हो कि ह्रस्व 'उ'कार एवं दीर्घ 'ऊ'कार की मात्राओं का प्रयोग दो प्रकार से चलन में रहा है। इनमें से एक प्रकार तो आधुनिक नागरीवत् किंचित् परिवर्तित रूप में अक्षर के नीचे मात्रा लगाकर लिखने का मिलता है, तथा दूसरा प्रकार पृष्ठ-मात्रा (पडी मात्रा) लगाकर लिखने का मिलता है। 'क्, त्, ज, द्' आदि कुछ अक्षरों में जब ये मात्राएँ लगती हैं तो उनका स्वरूप भी किंचित् परिवर्तित हो जाता है। यथा कु = कु.क्र3,कत |जु = ॐ ॐकाज कू = कू.क .क | जू कूकू, ,,जू तु = तु...क्त क दुदु.पु.पु.दा तू = तू...न क | दू = दू.पू.दन १. ब्राह्मी, शारदा एवं ग्रंथ लिपियों में भी ह्रस्व 'उ'कार एवं दीर्घ 'ऊ कार की मात्राओं के विविध प्रयोग देखने को मिलते हैं। For Private and Personal Use Only

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