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श्रुतसागर
जनवरी-फरवरी - २०१५ लिपि में लिखा जाने लगा। लहियाओं ने भी इस लिपि को अपनी आजीविका का प्रमुख आधार बना लिया। उनके द्वारा शिलाखण्डों, लोहपत्रों, ताडपत्रों, हस्तनिर्मित कागज एवं कपडा आदि पर राजप्रशस्तियाँ तथा संपूर्ण साहित्य भी इसी लिपि में लिपिबद्ध किया जाने लगा; जो आज हमारे ग्रन्थागारों में पाण्डुलिपियों के रूप में संरक्षित है। आज हिन्दुस्तान ही नहीं बल्कि देश-विदेश का शायद ही कोई ऐसा ग्रन्थागार होगा जहाँ प्राचीन नागरी लिपिबद्ध पाण्डुलिपियाँ संग्रहीत न हों। इस लिपि में निबद्ध प्राप्य साहित्य की पाण्डुलिपियों की इस विपुलता के आधार पर अनुमान लगाया जा सकता है कि इसका प्रचलन कितना अधिक और सर्वग्राह्य रहा होगा।
जबसे इस लिपि का उदय हुआ तबसे ही यह निरन्तर प्रगतिपथ पर गतिशील है। कालान्तर में देश-काल-परिस्थिति अनुसार परिवर्तित होते-होते आज हमें आधुनिक देवनागरी लिपि के रूप में प्राप्त होती है, जो हिंदुस्तान की राष्ट्रीय लिपि घोषित की गई है। इस लिपि के नामकरण संबन्धी विविध अवधारणाएँ निम्नवत् हैं
नागरी लिपि नामकरण विषयक अवधारणा इस लिपि को विविध नामों से जाना जाता है; यथा- नागरी, प्राचीन नागरी, देवनागरी, प्राचीन देवनागरी, जैन नागरी आदि।
नागरी - कालान्तर में नगर-नगर में मुख्यतया इस लिपि में लिखने का चलन होने के कारण एवं नागर ब्राह्मणों द्वारा लहिया के रूप में इस लिपि में अत्यधिक ग्रन्थ-लेखनकार्य करने के कारण इसका नाम नागरी लिपि प्रकाशित हुआ।
प्राचीन नागरी - प्राचीन लिपि होने के कारण इसे प्राचीन नागरी कहा जाने
लगा।
देवनागरी - संस्कृत भाषाबद्ध साहित्य इस लिपि में विपुल मात्रा में निबद्ध होने के कारण तथा संस्कृत भाषा को देवभाषा कहे जाने के कारण इस लिपि का नाम देवनागरी प्रचलित हुआ।
प्राचीन देवनागरी - प्राचीनकाल से चलन में होने के कारण देवनागरी नाम के आगे प्राचीन शब्द जुडकर प्राचीन देवनागरी नाम ख्यात हुआ।
जैन नागरी - विक्रम संवत् नवमी शताब्दी के उत्तरार्ध में गुजरात के वल्लभीपुर में देवर्द्धिगणि क्षमाश्रमण के नेतृत्व में 'वल्लभी वाचना' हुई, जिसमें
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