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श्रुतसागर
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जनवरी-फरवरी - २०१५ ६. गाथा नं. १७ वा ७. गाथा नं. १७ सूरिः श्रीमानदेवश्च सूरिश्रीमानदेवश्च
२. टीकाकारश्रीए प्रसिद्ध अर्थ करता केटलाक स्थानोए विशिष्ट/भिन्न अर्थ कर्या छे. जे नीचे मुजब छे - * निचिताय शब्दनो अर्थ (प्रसिद्ध ग्रंथोमां पाठ ज न होवाथी) प्राप्त नथी.
टीकागत अर्थ :- 'कर्मनो संग्रह ज जेमने नथी तेवा' एवो अर्थ कर्यो छे. * कृततोषा प्रसिद्धार्थ :- (नाममंत्रवाळा वाक्यना प्रयोग वडे) तुष्ट करायेली.
टीकागत अर्थ :- जेणे भव्यजीवोने संतोष आप्यो छे. तेवी. * जयावहेभवति प्रसिद्धार्थ :- हे जयावहे! (हे जयने लावनारी) हे भवति आप
टीकागत अर्थ :- विजयकारी हाथी जेनुं वाहन छे ते. * सुजये प्रसिद्धार्थ :- सारो जय पामनारी ('भगवती' शब्दनुं विशेषण कर्यु छे.
टीकागत अर्थ :- हे जयादेवी! ('सुजये' - देवी- नाम छे.) * सत्त्वानाम् प्रसिद्धार्थ :- अन्वय 'अभयप्रदाननिरते' साथे छे.
टीकागत अर्थ :- 'निवृतिनिर्वाणजाननि!' साथे कर्यो छे. * जयदेवि! विजयस्व-प्रसिद्धार्थ :- हे देवी! तुं जय पाम! विजय पाम!
टीकागत अर्थ :- हे जयदेवि! तुं विजय पाम. * गुणपति! प्रसिद्धार्थ :- त्रिगुणात्मक (सत्त्व-राजस्-तमस् गुणोथी युक्त) देवी!
टीकागत अर्थ :- वरदत्व-दक्षता-दाक्षिण्यादि गुणने धारण करनारी! * राजरोग प्रसिद्धार्थ :- राजा अने रोग
टीकागत अर्थ :- राजरोग = क्षय ३. कर्ताए जुदा-जुदा स्थळे शब्दसिद्धि-प्रमाण वगेरे दर्शावता-भागवत, खंडप्रशस्ति, गणरत्नमहोदधि, अनेकार्थसंग्रह, काव्यालंकार, अव्ययशब्दवृत्ति, सिद्धहेमशब्दानुशासन, पाणिनीयव्याकरण जेवा ग्रंथोनो प्रयोग कर्यो छे.
४. गाथा नं.८मां 'सर्वस्याऽपि च संघस्य पद कह्या पछी 'साधुनां च पद न्यास® कारण, गाथा नं. १३मां 'स्वस्ति च' शब्दमां "स्वस्ति' अव्ययनो शब्द तरीके प्रयोगनुं कारण, गाथा नं. १४मां 'नमो नमः' पदमां 'नमः' पदनी द्विरुक्तिनी शंका अने तेनुं समाधान, ए सिवाय - 'स्वामिने, प्रददे, विदर्भितः' शब्दोनी व्युत्पत्ति ध्यानाकर्षक छे.
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