Book Title: Shrutsagar 2015 01 02 Volume 01 08 09
Author(s): Hiren K Doshi
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba
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SHRUTSAGAR
January-February - 2015 अंगीकार करी. त्यारबाद थोडा ज समयमां अंग-उपांग-छेदसूत्रादिनो गहन अभ्यास करी ते बहुश्रुत था. पात्रता जाणी गुरु म. तेमने आचार्यपदथी अलंकृत कर्या. श्रीदेवविमलगणि विरचित 'श्रीमन्महावीरपट्टधरपरंपरा श्लो.७२/७३' मां तेमना आचार्यपद प्रदान प्रसंगनी एक विशेष घटना वांचवा मळे छे.
आचार्यपद प्रदान समये मानदेवमुनिना खभा उपर साक्षात् लक्ष्मी अने सरस्वतीने बेठेला जोईने गुरु म. ने संशय थयो के 'आचार्यपद पछी आनुं पतन तो नहिं थाय ने?' गुरु म. नी मनोविमासण कळी गयेला एमणे ते ज वखते यावज्जीव छ विगई त्याग कर्यो. अने जैन परंपरानो इतिहास भा. १, पृ. २९७ मुजब भक्तजनोना आहारनो पण त्याग कर्यो.
सूरिजीना नैष्ठिक ब्रह्मचर्य-ज्ञान-तप वगेरे गुणोथी आकृष्ट थयेली जयाविजया देवी प्रतिदिन तेमने वंदन करवा आवती हती. अन्य स्थळे जया-विजयाअपराजिता-पद्मा ए चार देवीओना नाम जणाव्या छे.
ते समये जैनोनी समृद्धिथी दीपती तक्षशिला नगरीमा पांचसो जिनमंदिरो हता. अचानक ए नगरीमा महामारी फाटी नीकळी अने लोको अकाळे मरवा लाग्या. आखुंय नगर मृतदेहोना ढगथी भराई गयु. नगरमां वेदना अने कल्पांत सिवाय कशुं संभळातुं न हतुं. ते समये केटलाक चिंतातुर श्रावको आ विकट परिस्थितिनो उपाय शोधवा लाग्या.
एमणे शासनदेवीनी आराधना करी त्यारे शासनदेवीए आकाशवाणी करी के 'आ म्लेच्छोना बळवान व्यंतरोए करेल उपद्रव छे. तेमां अमारेथी कशुं थशे नहीं.' अने जणाव्युं के - 'नाडोलनगरमां आचार्य मानदेवसूरिजी विचरे छे. तेमने अहीं बोलावी तेमनुं चरणोदक तमारा मकानोमां छांटो तो आ उपद्रव शांत थई जशे. वळी आ नगरनो तुरूष्को द्वारा आजथी त्रीजा वर्षे भंग थवानो छ माटे उपद्रव शांत थया पछी तमे अहींथी बीजा नगरे चाल्या जजो.'
देवीना आदेशथी स्वस्थ थयेल श्रीसंघे वीरचंद्र नामना श्रावकने नाडोल मानदेवसूरिजी पासे मोकल्यो. विनंतीपत्र लइ ते नाडोल पहोंच्यो त्यारे मध्याह्ननो समय थयो हतो. आचार्य म. अंदरना ओरडामां ध्यानमां बेठा हता. त्यारे जयाविजया देवीओ पूज्यश्रीना ध्यानबळथी आकर्षित थई त्यां आवी ओरडाना एक खूणामां बेठी हती. देवीओने जोई वीरचंदने आचार्यश्रीना चारित्र विशे अने शासनदेवीना आदेशमा शंका थई.
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