Book Title: Shrutsagar 2015 01 02 Volume 01 08 09
Author(s): Hiren K Doshi
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba
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SHRUTSAGAR
January-February - 2015 पुण प्रापंति विणुविमु तुम्हपाय, पाउ धरइ सिरितपगच्छराय । नर पोतइ जइ नही एक द्रम्म, वाणिज्ज करइ किमु कोडि द्रम्म ||३५।। जिम कोक'लोक निसि धरई शोक, रवि विणु तिम तुह्म विणु जीवलोक । ते दुक्खविणासण भवणभाणु, दइ दंसण सामिअ जुगपहाण(णु) ।।३६ ।। जगमंडण तुह्म विणु भरहक्खंड, किम सोहइ रवि विण पउमखज(खण्ड?)। जिम जीवह विणु ए सिर ढंढार', तिम सोमह विणु [ए]पहूइ असार ||३७।। सामिअ विणु जग विनडइ काल, केसरि विणु जिम वण दुठ्ठ व्याल । जगतइ उवेक्खिअ सोमि जाम, कहि कुण पालसिइ दयापाल ||३८।। दइ दंसण देव सेवक जणाण, निअ मस्तकि जिम तेवहि आण । करि सोम मनोरथ [स]फल अह्म, जिम होइ कयत्थ निअ मणुअजम्म ||३९।। अहवा सामिअ तुह कवण दोस, सेवकजण जाणिअ पई सदोस । जगनायक तई ते दूरिच(व)त्त, माहविदेखित्ति तु तेण पत्त ।।४०।। सीमंधर जिणवाणी सुणेवि, लुल्लेइ' इम अंबावि देवि। पामेसिई सुहगुरु एक जम्म, पच्छइपुण शिवपुरि सुख(क्ख)रम्म ||४१।। अहवा निब्भग्गह मह वियोग, तुझ पायह जइ नही पुण्ययोग । कप्पदुम किम पुरिसपाडि, तस पोतइ जइ नही कुइ निलाडि ।।४२।। गणहर तुं गणहरलच्छिहार, हुअ वरिस बयालीस महिमधार | गछनायकपद बत्ति(त्ती)स वास, पाली पई पूरी जगहआस ||४३।। इम सामिअ तुह्म गुणरयणरासि, भावइ जे भवियण मण उल्हासि । ते पामइ भवि-भवि (रि)द्धि-वृद्धि, तिहि वंछीअ सीडसिझइ) सव्वसिद्धि ||४४|| जयवंत पाटि तस जुगपहाण, छत्ति(ती)ससूरिगुणमणिनिहाण । जयचंद सुगुरु सूरिंदचंद, नंदउ जां ऊगइ सूरचंद ।।४५।।
।। इति श्रीमतपागच्छाधिराज युगप्रधान समान भट्टारकपुरंदर श्री सोमसुंदरसूरि बिरुदावली कुलकं ।। मु. लब्धिविजय पठनार्थ शुभं भवतु ।।
१. चक्रवाक, २. हाडपिंजर, ३. पृथ्वी, ४. हेरान करवू, ५. बोलवू.
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