Book Title: Shrutsagar 2015 01 02 Volume 01 08 09
Author(s): Hiren K Doshi
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba
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श्रुतसागर
जनवरी-फरवरी - २०१५ निअ आलोअण पट्ठवइ लेख, तिहिं हिअडइ पहु ए वडओ देख। इम जाणइ गणहर तुम्ह समाण(णु), नत्थी(त्थि)जां उगइ पुहविभाणु ।।२३।। बावत्तरिजिण चउवीसवट्ट, पित्तलमइ वीसजि[नावीसवट्ट । चउवीसवट्ट इगु पउमकोस, सूंअग कारिअ मुसिअमोस ।।२४।। सुरतणनइ फुरमाणिजत्त', गुणराजि कीअ जाणइ जगत्त। गोविंदसाह तणीअ पट्टि , जा मलि वलि अवर न कावि दिट्ठ ।।२५।। धरणिंदसाहि चउमुखप्रसाद, काराविअ कीअ जगसुजसवाद। इम भुवणब्भुअ करणीअ(य) हूअ, तुह उवएसिइं जाणइ सहूअ ||२६ ।। सामिअ तइ मुसिओ मोहजोह', साथिइं वलि सरिसु कोह-लोह। मड(द)-मंडइ मयणन पंचबाण, नवि खंडइ सामिअ तुह्मआण ।। २७।। माया नवि मंडइ आलजाल, सामिअ तुह्मसिउं आबालकाल। धूणी' धूमिई जिम दुरी थाय, मच्छर तिम मच्छर तुम्ह ताय ।।२८।। जिहिं देसनगरि पुरि पट्टणंमि, विहरइं तुम्ह पय घण उच्छवंमि। तिहि ईति डमर" दुमिक्ख मारि, गोलइ जिम ऊडी जाइ डारि ।।२९।। जयवंत जाम तुम्ह पाय देव, हूअ मेदपाटि जयलच्छिएव।। पहु पइ ऊवेक्खिअ सोम नाम, ए वड असमंजस होइ ताम ||३०|| छल पामिअ ए दुमिक्ख दुट्ठ, जग जगडई महिमंडलि पंइट्ठ। खिलचीअ दल दीसइ दुरंग, तिणि भंजिअ पुर पट्टणअभंग ।।३१।। धूलिइं धंधोलिअ दिसि अपार, तिणि डंपिअ' दिनकरकिरणभार । महिमंडलि हुअअ कंप लोइ, संकीअ लइ सुरपति अमरलोइ ।।३२।। जे जुगपहाण अतिलख [?]तुम्ह, माहे ते दीसइ विसेष...१२ इणि कारणि जगगुरु ज(जु)गपहाण, कुण अच्छइ सामी तुह्म[स]माण ||३३।। जगगुरु जव सामी तुह्म दि(दि)हि, हुअ गुज्जर धरि तव अमिवुट्ठि। पाउ धारत जइ तिहिं तुह्म पाय, अच्छरायण जोअत अमरराय ||३४।।
१. यात्रा, २. योद्धो, ३. सळगतो अग्निकुंड, ४. धूमाडो, ५. जे, ६. ते, ७. राष्ट्रनो आंतरिक अथवा बाह्य विप्लव, ८. मेवाड, ९. पीडवू. १०. व्यग्र थq, ११. घेरावू, १२. आ पदमां शब्दो खूटे छे.
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