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प्रज्ञाप्रकाशषत्रिंशिका
भांडारकर प्रत - इस प्रत को देखने से यह अवगत होता है कि इसको लिखनेवाला ज्यादा जानकार नहीं था। क्योंकि हस्व-दीर्घ, व्याकरण, भाषा आदि संबंधी अशुद्धियां इस में दृष्टिगोचर होती है। इस प्रत के अक्षर सुवाच्य है। इस प्रत का प्रमाण २६ x १३ (से.मी.) है। प्रत्येक पत्र में लगभग १२ पंक्तियां हैं तथा प्रत्येक पंक्ति में लगभग ३४ अक्षर है। इस प्रत में केवल मूल श्लोकों का ही उल्लेख मिलता है।
जामनगर प्रत - यह प्रत मल के साथ-साथ बालावबोध सहित है। इस में इस कृति के साथ-साथ अन्य तीन कृतियों का भी समावेश है। इस प्रत के अक्षर पूर्व प्रत की तुलना में स्पष्ट नहीं है। सहज पढने योग्य नहीं है। इस प्रत का माप २२ x १८ (से.मी.) है। प्रत्येक प्रत में लगभग १२ पंक्तियां है तथा प्रत्येक पंक्ति में प्रायः ३२ अक्षर है। इस प्रत ह्रस्व-दीर्घ, भाषा, व्याकरण संबंधी अशुद्धियां देखने को मिलती है। जामनगर वीशा ओसवाल हस्तप्रत भंडार की संवत् १८८२ में लिखी हुई प्रत है। (डाबडा २९ क.६३६) उस प्रत में चार कृतियां बालावबोध के साथ है। १) गौतम कुलक २) पुण्यकुलक ३) परमानंद पच्चीसी ४) प्रज्ञाप्रकाश षटत्रिंशिका। इस प्रति में कर्ता का परिचय देनेवाला अंतिम श्लोक नहीं है। लेखक की प्रशस्ति में लंबी परंपरा का उल्लेख है।( पं. नित्यचंद गणि-पं. प्रीतचंद्र गणि-पं. जिनचंद्र गणि-पं. रूपचंद्र गणि-पं. खेमचंद्र गणि-म. केसरचंद्र द्वारा यह प्रत लिखी गई है।) संपादन
दोनों भी प्रतें बहुशः अशुद्ध होने से एक दूसरे की सहायता से उनके पाठों का निर्धारण किया है। कर्ता का वंश या शिष्य परंपरा हमने प्रथम प्रत के आधार पर निश्चित की। दूसरे प्रत में हमें केवल उस प्रत को लिखनेवाले की परंपरा दृष्टिगोचर हुई। हमारे ज्ञान की सीमा के कारण जहाँ पर पाठ संदेहास्पद मालूम हुआ उन शब्दों को अधोरेखित कर विद्वत् जनों को विचार के लिए छोड दिया है। तथा जहाँ पर हमें पाठ परिवर्धन की आवश्यकता लगी वहाँ पर हमने [ ] इस चतुष्कोन कोष्ठक में उस शब्द को लिखा है। अशुद्ध पाठ की जगह शुद्ध पाठ () वर्तुलाकार कोष्ठक में लिखा है।
प्रस्तुत ग्रंथ के संपादन हेतु हमें भांडारकर इन्स्टिट्युट पुणे, पूज्य गणिवर श्री हर्षशेखरजी म.सा., बाबुभाई सरेमलजी, श्री जगदीशभाई शेठ (जामनगर) का अमूल्य सहकार्य प्राप्त हुआ। उनके प्रति हम कृतज्ञता व्यक्त करते है। तथा इस ग्रंथ के संपादन में पूज्य मुनिवर श्री वैराग्यरति विजयजी गणिवर का संपूर्णतः मार्गदर्शन प्राप्त हुआ। उनके प्रति भी हम कृतज्ञ है। तथा अन्य सभी महानुभाव तथा श्रुतभवन संशोधन केंद्र के सभी मान्यवर जिन्होंने प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से हमें कार्य में मदद कि उनके प्रति भी हम कृतज्ञता व्यक्त करते हैं।
___ अंत में पाठकों से यही निवेदन करते हैं कि भूलवश यदि कोई त्रुटि रह गई हो तो वे उदार मन से संपादक को सूचित करने का कष्ट करेंगे।
तुषार सुर्वे १ जनवरी २०१४