Book Title: Shrutdeep Part 01
Author(s): 
Publisher: Shubhabhilasha Trust

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Page 156
________________ भूधर कविकृत ॥आत्मनिंदागर्भितनेमिजिन स्तवन॥ ॥जिनेन्द्रेभ्यो नमः॥ त्रिभुवनगुरु स्वामि जी, करुणानिधि नामि जी, सुण अंतरजामि म्हारी विनति जी॥१॥ मैं दास तुम्हारा जी, दुखिया अतिभारा जी, दुःख मेटनहारा तुम्ह जादोपति जी॥२॥ भमियो संसारा जी, चिर विपत भंडारा जी, एह संसार असारा चहु गति डोलीयो जी॥३॥ दुःख मेरु समाणा जी, सुख सरसों का दाणा जी, एह अब जाने ज्ञान तराजु तोलियो जी॥४॥ थावर तन पायो जी, तस नाम धरायो जी, करम कुंथु कहायो मर भमरा हुवा जी॥५॥ पशु काया सारी जी, नाणाविध धारी जी, जलचारी थलचारी उडन पंखेरुवा जी॥६॥ नरकन के मांहि जी, दुख अउर कहाई जी, जहां हय गीअंध घोर सरताखारकी जी॥७॥ कुण असुर संघारै जी, निज वैर विचारी जी, मिल बांधै और मारै निरदै नारकी जी॥८॥ मानुष भव अवतारो जी, रह्या गर्भ मझारो जी, अराट रोवै जब जन्म तिवारे की वेदनाजी॥९॥ जोबन तन रोगी जी, कोइ विरह वियोगी जी, अब भोगी जब वृद्धपनेकी वेदना जी॥१०॥ सुरपदवी पायी जी, रंभा उर ल्याइ जी, तहा देख पराइ संपत झूरियो जी॥११॥ माला कुमालाणी जी, तव आरत वाणिजी, थित पूर्ण वाणी मृत बसुरियो जी॥१२॥ प्रभु तुम्ह केडेजी, भुगते बहोतेरे जी, मेरे कुछ कहते पार होय न हि जी॥१३॥ मे था मदमाता जी, धाइहि निजी साता जी, सुखदाता जगपराता तुमे जाना नही जी॥१४॥ प्रभु भागे पायो जी, गुणसरण सहायो जी, अब सरण तुम्हेरि भवबाधा हरो जी॥१५॥ भववास बसेरा जी, फिर होय न फेरा जी, सुख पामि जिम चेरा प्रभु तिम किजीये जी॥१६॥ तुम्ह शरण सहारो जी, तुम्ह साजन भाई जी, तुम्ह माई तुम्ह तात दया मुझ किजीये जी॥१७॥ भूदर कर जोडै जी, ठाडे प्रभु ओडै जी, निज दास निहारै निरभै किजीये जी॥१८॥ ॥इति स्तवनम्॥

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