Book Title: Shrutdeep Part 01
Author(s):
Publisher: Shubhabhilasha Trust
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उपा. श्रीसमयसुंदरगणिकृता यतिअंतिमआराधना ॥श्री इष्टदेवाय नमः॥
स्वस्तिकल्याणकर्तारं नत्वा श्रीशीतलं जिनम्। अहमाराधनां वच्मि यति(ती)नामात्मशुद्धये।।
तत्रास्यां यत्याराधनायां षडधिकारा ज्ञेयाः। तथाहि- पूर्वं सम्यक्त्वशुद्धिः(१) ततोऽष्टादशपापस्थानकपरिहारः (२) ततः चतुरशीतिलक्षजीवयोनिक्षामणम् (३) संयमविराधनाया दुष्कृतदानं(४) ततो दुष्कृतगर्हा (५) ततः सुकृतानुमोदना (६)।
तत्रादौ आराधनाविधिः प्रोच्यते-तथाहि शुभसौम्यवारे शुभवेलायां भोजनानन्तरं देहं शुचिं कृत्वा सर्वसङ्घमाकार्य अग्रेस्थापितश्रीवीतरागप्रतिमाया अग्रे सम्मखीभय ईर्यापथिकी प्रतिक्रम्य चैत्यवन्दनां कत्वा मखवस्त्रिका प्रतिलेख्य वन्दनकद्वयं दत्त्वा आराधनाकृद् भणति "भगवन् ! आराधनासूत्र सुणावौ।" गुरूभणति -"विधिपूर्वक सांभलौ।" तथाहि
अरिहंतो मह देवो जावज्जीवं सुसाहुणो गुरुणो। जिणपन्नत्तं तत्तं इय सम्मत्तं मए गहिय॥१॥
देव तौ श्रीवीतरागदेव अढारै दूषणे करी रहित, देवतां कोडि तिणें महित, चौतीस अतिसय विराजमान, पैंतीस वाणीगुणकरी सौभित, आठ महाप्रातिहार्य तिणे करी युक्त, अनन्तगुणनिधान, सर्व देवमांहे प्रधान, देवाधिदेव ते माहरै देव एहवो सरदहज्यौ (१) गुरु तो सुसाधु जे पंचमहाव्रतरा धरणहार, बयालीस आहार दूषणना टालनहार, छ जीवनिकायना पीडाहर, अढारै सहस्र शीलांगरथना धारक, संसारसमुद्रतारक, पांचे सुमिते सुमिता, त्रिहुं गुप्ते गुप्ता, ज्ञानदर्शनचरित्रकरि मोक्षमार्गसाधक, वीतरागदेवनी आज्ञारा आराधिक, क्रियाकलापसावधान, सदा धर्मध्यानकुक्षीसंबल, चरित्रपात्र, निर्मलगात्र एहवा साधु भगवंत माहरे गुरु एहवो सरदहिज्यौ (२) धर्म तो श्रीकेवलीभगवंतनो भाख्यौ आज्ञारूप, दयामयी, दर्गति पडतां प्राणीयांने धारे, जे करै ते संसार समुद्रने तरै एहवो वीतरागदेवनो धर्म ते माहरे धर्म (३) इतनें सुध समकित तुमनें उचरायो१।
हिवै अढारै पापस्थानक कहै छै ते सांभलीने सरदहिज्यौआसवकसायबंधणकलहाभक्खाणपरपरीवाओ। अरइरइपेसुन्नं मायामोसं च मिच्छत्त॥१॥
पांचे आश्रव वारंवार सेव्या हुवै। तिहां पहिलो आश्रव प्राणातिपात कीधो हुवै। ते किम ? पृथवी १ अप् २ तेउ ३ वाउ ४ वनस्पति ५ बेंद्री ६ तेंद्री ७ चौरेंद्री ८ पचेंद्री ९ ए नवविधि जीव अभिहया वत्तिया इत्यादि दशप्रकारे करी इणभवै परभवे जाणतां अजाणतां मनवचनकायायै करी दुहव्या हुवै (दुहाव्या हुवै) दुहवतां अनुमोद्या हुवै ते अरिहंतनी साखिं १ सिद्धनी साखिं (२ साधुनी साखिं) ३ देवनी साखिं ४ आत्मनि साखिं ५ गुरुनी साखिं ६ मिच्छा मि दुक्कडं॥१॥
बीजौ आश्रव मृषावाद बोल्यौ हुवै। ते किम ? हासें करी, क्रोधे करी, माने करी, मायाए करी, लोभे करी बोल्यौ हुवै। वलै कन्यालीक १ गवालीक २ भौमालीक ३ थापणमोसो ४ कीधो हुवै। कुडी साख दीधी हुवै। इणभव परभव जाणतां अजाणतां ते मिच्छा मि दुक्कडं॥२॥
तीजो आश्रव अदत्तादान लागो हुवै। ते किम ? पारकी वस्तु चौरी हुवै चौरावी हुवै चौरतां अणुमोदी हुवै। इणभव परभव जाणतां अजाणतां ते मिच्छा मि दुक्कडं॥३॥
चौथो आश्रव मैथुन सेव्यौ हुवै। ते किम ? देवसंबंधी, मनुष्यसंबंधी, तिर्यंचसंबंधी सेव्यौ हुवै। आपणी पारकी स्त्री, आपणो पारको पुरुष तेहनी कायाने विषै लोलुपता कीधी हुवै। इणभव परभव जाणतां अजाणतां ते मिच्छा मि दुक्कड॥४॥

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