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श्रमण संस्कृति : सिद्धान्त और साधना
४. वैनयिकवाद-इस दर्शन में विनय से ही मुक्ति प्रदर्शित की है । यह विनय सुर, नृपति, यति, ज्ञाति, स्थविर, अधम, माता और पिता के प्रति मन, वचन, काय और दान के भेद से चार प्रकार की है । अतः वैनयिकवाद के ८४४ = ३२ भेद हुए।
"वैनयिकमतं विनयश्चेतोवाकायदानत: कार्यः । सुरनृपतियतिज्ञातिस्थविराधममातृपितृषु सदा।।"१०
ब्रह्मजाल सुत्त में और सूत्रकृतांग में निर्दिष्ट ये दार्शनिक मत एक-दूसरे के पूरक कहे जा सकते हैं। आवश्यकता यह है कि उक्त प्रत्येक मत का सही विश्लेषण कर समीक्षात्मक मूल्यांकन किया जाए, ताकि यह ज्ञात हो सके कि उनमें कितने सम्प्रदाय श्रमण परम्परा से सम्बद्ध हैं। मुझे लगता है, उनमें अधिकांश सम्प्रदाय श्रमण संस्कृति के धरातल पर खड़े हुए हैं, और प्रत्यक्षअप्रत्यक्ष रूप से किसी न किसी प्रकार श्रमण परम्परा से प्रभावित हैं।
-डा० भागचन्द जैन, भास्कर'
१०. वही, पृ० २१०।१ (पत्राकार)
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