Book Title: Shraman Sanskruti Siddhant aur Sadhna
Author(s): Kalakumar
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 207
________________ १६४ श्रमण संस्कृति : सिद्धान्त और साधना की भावना से ! हमने दो-दो महायुद्धों की विनाशकारी लीलाओं का प्रत्यक्ष दर्शन किया है, उसके दुष्परिणामों के बीच मानव एवं समस्त प्राणिजगत् को तड़पते-विनशते देखा है। और यह अनुभव किया है कि किस प्रकार एक व्यक्ति अथवा कुछ व्यक्तियों की दुराकांक्षाएँ स्वयं तो नष्ट-ध्वस्त होती ही हैं, विश्व को भी भयंकर तबाही के कगार पर लाकर खड़ी कर देती हैं। और दूसरी ओर, एक व्यक्ति के अंग में से स्फुरित प्रेम, सहानुभूति एवं सौहार्द की सौम्य भावनाएँ किस प्रकार से एक साधारण से व्यक्ति को विश्ववंद्य तक बना देती हैं। वस्तुतः प्रेम का राज्य अजर-अमर होता है, उसका विनाश कभी नहीं होता । करुणा का कलेवर कितना कमनीय होता है, यह कोई बुद्ध की वाणी में डुबकी लगाकर देखे । अहिंसा की अमरता कितनो पावन है, यह कोई महावीर के संदेशों में झाँके । धन्य हैं वे पूर्वज जिन्होंने ऐसी विश्व-कल्याणकारी विभूति प्रदान की और धन्य है वहाँ की वसुन्धरा जिसके रजकण ने अपने पावन स्पर्श से उस महान दिव्यता का अक्षय वरदान भर दिया, अपनी सोंधी सुगंध उन पुरुषों के चरित्र में यशःसुरभि की सौम्यता के रूप में भर दी। -प्रो. रामाश्रय प्रसाद सिंह, एम० ए० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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