Book Title: Shraman Sanskruti Siddhant aur Sadhna
Author(s): Kalakumar
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 232
________________ भा. भाषा एवं साहित्य में श्रमण संस्कृति के स्वर २१९ से यह स्पष्ट हो जाता है कि जैन धर्म का गुजरात में पर्याप्त प्रचार रहा है।" १५वीं शती के पहले के गुजराती साहित्य का अवलोकन करने से यह पता चलता है कि आरंभ से १५वीं शती तक गुजराती पर जैन साहित्यकारों का ही प्रभाव विशेष है। जैनेतर साहित्यकार नगण्य हैं। प्राचीन गुजराती साहित्य को इसीलिए विद्वानों ने प्राचीन जैन साहित्य के नाम से पुकारना ज्यादा अच्छा माना है । २६ ___ गुजराती भाषा और साहित्य का आरंभ, इतिहास लेखकों ने नरसिंह मेहता (१६वीं शती ई०) से माना है, कितु वस्तुतः गुजराती भाषा का सहीरूप में आरंभ हेमचन्द्राचार्य (१२वीं शती ई०) से हुआ है। इसी मत की पुष्टि सर्वश्री पं० बेचर दास, केशवराम का. शास्त्री तथा अन्य विद्वानों ने की है। प्रागनरसिंह युग के साहित्य में हेमचद्राचार्य का बड़ा महत्त्वपूर्ण स्थान है। हेमचन्द्राचार्य के अतिरिक्त मेरुतुग (१३०५ ई०) का नाम विशेष उल्लेखनीय है। इन्होंने 'प्रबंध चितामणि' की रचना करके अपूर्व ख्याति अजित की। मेरुतू ग के बाद अनेक जैन कवियों ने रास, फाग, बारहमासी आदि विधाओं में साहित्य-सर्जना की। जिस प्रकार से हिन्दी मे रासो काव्यरूप में साहित्य रचना हुई, गुजराती में 'रास' के नाम से हुई । गुजरातो रास साहित्य की मूख्य विशेषता है कि उसके सर्जक जैन कवि हो रहे हैं। इन रास रचनाओं में सालिभद्र सूरिकृत 'भरतेश्वर बाहुबलिरास' (११८५ ई०), धर्म सूरि कृत 'जम्बुसामि चरिय'(१२१० ई०), जिनदत्त सूरिकृत 'रेवंत गिरि रासु' महत्त्वपूर्ण हैं। इसके अतिरिक्त पैथडरास, कछुलोरास एवं समरारास ऐतिहासिक तथ्यों से पूर्ण उल्लेखनीय कृतियाँ हैं । फाग काव्यरूप में, जो कि रास का ही एक विशिष्ट प्रकार है, जैन कवियों ने नेमराजुल और स्थूलभद्र कोश्वा को नायक-नायिका मानकर उन पर अनेकों रचनाएँ की हैं। गुजराती फागु काव्यों में २५. गुजरात की हिन्दी सेवा, अंबाशंकर नागर ___ ना० प्र० पत्रिका वर्ष ६३, अंक २ पृ० १४० २६. वही वही पृ० १४१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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