Book Title: Shraman Sanskruti Siddhant aur Sadhna
Author(s): Kalakumar
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 231
________________ २१८ श्रमण संस्कृति : सिद्धान्त और साधना जिन समुद्र सूरि, लक्ष्मी वल्लभ, राम विजय आदि प्रसिद्ध साहित्यकार हए । राम विजय ने पद्य की अपेक्षा गद्य में अधिक रचनाएँ की। उन्नीसवीं शदी में रघुपति, ज्ञानसार, क्षमाकल्याण, आचार्य जयमल आदि अनेक साहित्यकार हुए। इस काल में तेरापंथी के संस्थापक आचार्य रमणजी ने राजस्थानी जैन साहित्य में एक नया स्रोत बहाया। उन्होंने आचार क्रांति करके तेरापंथ की स्थापना की थी, अतः उनके लेखन में उसी क्रांति भावना का उद्दाम स्वर विस्फुटित हुआ है । उनका समग्र साहित्य ३८ सहस्र पद्यप्रमाण है । बीसवीं शती के साहित्यकारों में श्री जयाचार्य का उल्लेखनीय स्थान है। उन्होंने राजस्थानी में साढ़े तीन लाख पद्यप्रमाण साहित्य लिखा है। उनकी लेखनी से गद्य और पद्य-दोनों ही क्षेत्रों में साधिकार सर्जना हुई है। जयाचार्य के पश्चात् आचार्य तुलसी तथा उनके शिष्यसंघ के विद्वान शिष्य आज भी राजस्थानी भाषा और साहित्य में रचनाएँ करके राजस्थानी भाषा और साहित्य के विकास में महत्त्वपूर्ण योगदान दे रहे हैं। इनके अतिरिक्त भी बहुत से उल्लेखनीय साहित्यकार हैं, जिनका स्थानाभाव के कारण यहाँ उल्लेख करना संभव नहीं। गुजराती भाषा और साहित्य गुजरात प्रदेश जैन धर्म का एक प्रधान केन्द्र रहा है। बहुत प्राचीन काल से गुजरात में जैन धर्म के प्रचलित होने के प्रमाण मिलते हैं। जैन धर्म के २२वें तीर्थंकर नेमिनाथ के गिरिनार में समाधि लेने और ई० ५वीं शती में मुनि सुव्रत तीर्थंकर के शकुनि-बिहार नामक आश्रम, भृगुकच्छ में होने का उल्लेख अनेक विद्वानों ने किया है । २४ इसके अतिरिक्त वल्लभी के राजा शिलादित्य (५वीं शती), वृद्धपुर के राजा ध्रुवसेन (५वीं शती) और फिर आगे चलकर वनराज चावड़ा आदि के जैनधर्म में दीक्षित होने का उल्लेख मिलता है। इन ऐतिहासिक उल्लेखों तथा गिरनार, पावागढ़ आदि सिद्ध क्षेत्रों २४. मध्यकालीन गुजराती साहित्य -क० मा० मुंशी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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