Book Title: Shraman Sanskruti Siddhant aur Sadhna
Author(s): Kalakumar
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 233
________________ २२० श्रमण संस्कृति : सिद्धान्त और साधना जिन पद्मसूरिकृत 'सिरिथ लिभद्द फागु' (१३३४ ई०), राजशेखर सूरि कृत 'नेमिनाथ फागु' (१३४४ ई०) महत्तवपूर्ण हैं। बारहमासी काव्य में बारहों महोने का ऋत वर्णन क्रमिक रूप में होता है । बारह मासों की परम्परा में 'वीसलदेव रासो' प्रथम बारहमासा है। इसके अतिरिक्त 'नेमिनाथ चतुष्पदिका' (१२४४ ई०में रचित) एक सुन्दर बारहमासा है । प्राग नरसिंह युग तक प्रायः यह देखा गया है कि जैन कवि साम्प्रदायिक सिद्धान्तपरक रचनाएं ही करते रहे, यह काल १० वीं शतो से १७ वीं शतो तक रहा। नरसिंह मेहता के पश्चात (१७ वीं शती के पश्चात् ) गुजराती के जैन कवि साम्प्रदायिकता के संकीर्ण वंधनों को छोड़कर लोकहितार्थ व्यापक विषय क्षेत्रों में रचनाएँ करने लगे। जैन कवि भी संत कवियों की भाँति, उनके स्वर में स्वर मिलाकर संगीतात्मक पद्यों एवं मुक्तकों में प्रेम, मस्तो, अनासक्ति, रूढ़ियों को व्यर्थता, अंतर्मुखी प्रवृत्ति, संयम, शील और सदाचार का उपदेश देने लग । इस युग के साहित्यकारों में आनंदघन, ज्ञानानंद, विनयविजय, यशोविजय, किशनदास और श्रीमद् रायचंद्र के नाम विशेष महत्त्वपूर्ण हैं। ____ इनके अतिरिक्त गुजराती के जैन कवियों ने रामायण, महाभारत जैसे पौराणिक आख्यानों, तीर्थंकरों के जीवन चरित्रों तथा अनेकानेक लघु आख्यायिकाओं की सर्जना करके गुजराती भाषा को समृद्ध किया है। आधुनिक गुजराती में भी अनेक जैन साहित्यकार जैनधर्म सम्बन्धी रचनाओं की सर्जना में प्रवृत्त हैं। मराठी भाषा और साहित्य मराठी भाषा में जैन साहित्य अधिक प्राचीन समय में नहीं पाया जाता । इसमें जैन साहित्य सर्जना का आरंभ करने वालों में भट्टारक सम्प्रदाय के जैनमुनि ही प्रमुख रूप से हैं। प्रमुख साहित्यकारों के नाम निम्न द्रष्टव्य हैं । भट्टारक जिनदास--ये मराठी जैन साहित्य के प्रथम ज्ञातकर्ता थे। इनका समय ई० १७२८ से १७७८ तक का बताया जाता है। इनको महत्त्वपूर्ण कृति हरवंश पुराण (पूर्वार्द्ध) है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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