Book Title: Shraman Sanskruti Siddhant aur Sadhna
Author(s): Kalakumar
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 234
________________ भा. भाषा एवं साहित्य में श्रमण संस्कृति के स्वर २२१ गुणदास अपरनाम गुणकोति-ये भी मराठी के अच्छे विद्वान् थे। इन्होंने श्रेणिक पुराण, रुक्मिणीहरण, धर्मामृत को रचना मराठी में की है। पदम पुराण की रचना भो इन्होंने आरंभ की थी, जो पूरी न हो पाई । इनके अतिरिक्त सर्व श्री मेघराज, कामराज, वोरदास अपरनाम पासकीति (१६२७ ई०), महाकीर्ति (१६६६ ई०), लक्ष्मीचद्र (१७२८ ई०), जनार्दन (१७६८ ई०) महित सागर, दामा, विशालकीति गगादास, जिनसागर, रत्नकीति, जिनसेन, ठकाप्पा, मकरंद, सटवा और देवेन्द्रकीति आदि साहित्यकारों के नाम उल्लेखनीय हैं। ये सभी लेखक मराठी की प्राचीनधारा के आधारस्तंभ माने जाते हैं। मराठो के आधुनिक साहित्य में भी, अनेक आधुनिक साहित्यकार साधनारत हैं। द्राविड़-भाषा-परिवार जिस प्रकार से उत्तर भारत में प्रधानतया आर्य भाषा परिवार की भाषाएँ व्यवहृत हैं, दक्षिण भारत में द्राविड़-भाषा परिवार की भाषाएँ अबाध रूप से प्रचलित हैं। हम जानते हैं कि साहित्य और संस्कृति-वाङमय की दो प्रमुख धाराएं हैं, जो क्रम से सर्वदिश संचरण करती हैं। इस सर्वदिशसंचरण में यह स्वाभाविक है कि वे स्थान-स्थान की संस्कृति एवं साहित्य से प्रभावित हों तथा स्थानस्थान की संस्कृति एवं भाषा को प्रभावित करें। और इस क्रम में उत्तर भारत की, आर्य भाषा-परिवार की भाषाएँ, मुख्य रूप से संस्कृत भाषा ने दक्षिण की द्राविड़-भाषा-परिवार को प्रभावित किया तथा उन भाषाओं से भी प्रभावित हुई । यही कारण है कि दक्षिण की भाषाओं में संस्कृत शब्दावली का बहुलता में प्रयोग होता है। संस्कृत में भी दक्षिण की शब्दावली का प्रयोग पाया जाता है। 'नीर, पल्लि, मीन, वल्लि, मुकुल, कुतल, काक, ताल, मलय, कलि, कल्प, तल्प और खर्ज आदि शब्द द्राविड़ भाषाओं से ही संस्कृत में आए हैं । २७ द्राविड़-भाषा-परिवार को प्रमुख भाषाएँतमिल, तेलगु, मलयालम, कन्नड़ में जैन साहित्यकारों ने २७. डा० काल्डीवेल : करनाटक कवि चरित, भाग-३ (प्रस्तावना) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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