Book Title: Shraman Sanskruti Siddhant aur Sadhna
Author(s): Kalakumar
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 208
________________ भारतीय भाषा एवं साहित्य में श्रमण संस्कृति के स्वर साहित्य और दर्शन : __ जीवन की अभिव्यक्ति के नाना रूपों का विभिन्न विधाओं में, विभिन्न छवियों में अंकन यदि साहित्य है, तो यह जीवन स्वयं में सम्पूर्ण साहित्य है। ____ इसी क्रम में, यदि जीवन को दृष्टि-बिम्बों में बाँधना, उसके प्रत्येक रहस-राज का अवलोकन करना, उसके अस्तित्व-अनस्तिस्व का मनन करना, और फिर एक दृष्टिकोणविशेष से उसे रूपायित करके किसी सीमारेखा की मुहर लगाना, दर्शन है, तो जीवन स्वयं दर्शन है। __ और यदि कुल मिलाकर देखें, तो जीवन एक ही है, जहां से दर्शन की किरणें फूटती हैं, और साहित्य के सुमन सुवासित होते हैं। अतः निश्चय ही साहित्य और दर्शन अपने आप में दो वस्तु नहीं हैं, बल्कि एक सिक्का के दो पहलू हैं । जीवन एक है, साहित्य उसे एक रूप में देखता है, दर्शन उसे दूसरे रूप में देखता है । और जब ये दोनों एक-दूसरे को देखने लग जाते हैं, तब वही स्थिति हो जाती है, जैसे सामने के शीशे में देखने के समय देखने वाला व्यक्ति एक ही होता है, किन्तु बिम्ब-प्रतिबिम्ब मिलकर दो रूप हो जाते हैं । जीवन एक हो है, शीशे में चाहे दर्शन का प्रतिबिम्ब दिखे देखने वाले को अथवा साहित्य की आत्मा झलके । यहीं पर आकर साहित्य दर्शन में समाहित हो जाता है, और दर्शन साहित्य में । साहित्यकार जो कुछ देखता है, मनन करता है, अपने अन्दर में अनुभूति पाता है, उसी आत्मिक अनुभूति की शिवमयी अभि १९५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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