Book Title: Shraman Sanskruti Siddhant aur Sadhna
Author(s): Kalakumar
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 228
________________ भा. भाषा एवं साहित्य में श्रमण संस्कृति के स्वर २१५ हैं, तथा अन्य अनेक तैयार करने में संलग्न हैं, जिन सभी लोगों के नाम स्थानाभाव के कारण यहाँ देना संभव नहीं है। हाँ, जैन साहित्य के शीर्षस्थ प्रतिभासम्पन्न लेखकों में पं० सुखलालजी, पं० बेचरदास डोशो, दलसुख माल वणिया, रिषभदास रांका, प्रो० चम्पालाल सिंघई, प्रो. रामाश्रय प्र. सिंह प्रभृति के नाम हिन्दी के जैन साहित्यकारों में आदर के साथ लिए जाएंगे। जैसा कि पहले इगित किया गया है, हिन्दी की जैन पत्र-पत्रिकाएँ जो कि आज विपुल परिमाण में निकल रही हैं, जैन साहित्य के विकास में उनके संपादकों तथा उनसे सम्बद्ध लेखकों का योगदान महत्त्वपूर्ण है। __ इस प्रकार हम देखते हैं कि हिन्दी के उद्भवकाल से भी पूर्व से जबकि अपभ्रश भ षा जन-जीवन के बोच प्रचलित थी, जैन साहित्यकारों ने धर्म, अध्यात्म, दर्शन, समाज, राष्ट्र, संस्कृति, सभ्यता आदि विषय-बिन्दुओं से सम्बद्ध रचनाएँ करके जन-सामान्य के बीच प्रचलित किया, धर्म की नींव को सुदृढ़ किया। हिन्दी साहित्य का आदिकाल तो जैन साहित्यकारों की रचनाओं की आधारभित्ति पर ही स्थित है, मध्यकाल पूर्णतः प्रभावित है, रीतकाल सम्पन्न है तथा आधुनिक काल विविध विधान्तर्गत प्रणीत कृतियों से भव्य विकास पा रहा है। आज तो जैनधर्म को युगभाषा के रूप में हिन्दी भाषा हो प्रतिष्ठित है। राजस्थानी भाषा और साहित्य राजस्थानी भाषा--यह नाम इस भाषा का आदिनाम नहीं है। जब प्रदेश का नाम राजस्थान पड़ा, तभी से इसे इस नाम से अभिहित किया जाता है। भारत की स्वतंत्रता से पूर्व राजस्थान २१ छोटे-बड़े विभागों में बँटा हआ था। इसके अतिरिक्त अजमेर-मेरवाडा का प्रदेश अंग्रेजी शासन में अलग से संयुक्त था। ये २१ राज्य थे-- १. उदयपुर, २. डूगरपुर, ३. बाँसवाड़ा, ४. प्रतापगढ़ , ५. शाहपुरा, ६. करौली, ७. जैसलमेर, ८. बूंदी, ६. कोटा, १०. सिरोही, ११. जयपुर, १२. अलवर, १३. जोधपुर, १४. बीकानेर, १५. किशनगढ़, १६. दांता, १७. झालावाड़, १८. भरतपुर, १६. धौलपुर, २०. पालन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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