Book Title: Shraman Sanskruti Siddhant aur Sadhna
Author(s): Kalakumar
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 206
________________ श्रमण संकृति के विकास में बिहार की देन : १६३ अतः यह निःसंकोच कहा जा सकता है कि श्रमण-संस्कृति के उद्भव और विकास में बिहार का योगदान सबसे अधिक रहा है । भगवान् महावोर और भगवान् बुद्ध का बिहार की पवित्र भूमि पर अवतरण मानवता के लिए वरदान सिद्ध हुआ। इन महात्माओं के हृदय में मानव-मात्र के लिए अपार स्नेह और असीम करुणा का सागर लहरा रहा था। इन दोनों के हृदय-सागर से धामिक सुधार की जो लहरें निकलों, वे मध्ययुगीन सन्तों से होती हुई गाँधी और बिनोवा तक पहँची हैं, और आज भी श्रमण-संस्कृति के महान् साधक, तपस्वी, श्रमण और स्थविर उनके दिव्य एवं अमृतोपमसंदेश को सारे संसार के कल्याणार्थ घूम-घूमकर प्रसारित और प्रचारित कर रहे हैं। भौतिकता के आवर्त में पड़े विश्व के निकलने का एक हो मार्ग है और वह है श्रमण-संस्कृति का प्रेम और करुणा का मार्ग, सत्य और सेवा का मार्ग; अहिंसा और मानवता का मार्ग, जिसे आज से २५०० वर्ष पूर्व महात्मा बुद्ध एवं महावीर वर्द्धमान ने बतलाया था। आइए, हम सभी संसारवासी जाति, वर्ण, क्षेत्र और सम्प्रदायविशेष के घेरे से बाहर निकल कर मानवता के प्रशस्त पथ पर विचरें। श्रमण-संस्कृति के महान् प्रवर्तकों- भगवान् महावीर और भगवान बुद्ध के प्रति हमारी सच्ची श्रद्धांजलि यही होगी कि हम सत्य, सेवा, स्नेह, करुणा और अहिंसा के मार्ग पर बढ़ते हुए सम्पूर्ण प्राणियों के कल्याण के लिए अपने जीवन को अपित करें। युद्धजजेर संसार का कल्याण बुद्ध और महावीर की करुणा और दया की भावना में ही निहित है। करुणा का सिद्धान्त किसी भी धर्म के इतिहास में अनुपम है और बौद्ध तथा जैन-धर्मों ने बिहार की पवित्र भूमि से वर्द्धमान महावीर तथा तथागत बुद्ध के माध्यम से इसी अनुपम सिद्धान्त का प्रतिपादन किया। विज्ञान की विभीषिका से संत्रस्त मानव जाति के बचने की एक हो राह है और वह है महात्मा बुद्ध तथा महावीर वर्द्धमान का बताया हुआ सत्य और अहिंसा का मार्ग। विश्व के उत्थान और पतन, सृजन और संहार के इतिहास पर जब हम गहराई से विचार करेंगे, तब यह तथ्य स्वतः स्पष्ट हो जाएगा कि हमारे जीवन को महत्त्वाकांक्षाएँ, विनाशकारी माध्यमों एवं मंतव्यों से फलीभूत हो सकती हैं, अथवा सत्य, प्रेम और दया Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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