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श्रमण संस्कृति का अहिंसा दर्शन एवं विश्वधर्म-समन्वय
तथागत बुद्ध का जीवन 'महाकारुणिक जोवन' कहलाता है। दीनदुखियों के प्रति उनके मन में अत्यन्त करुणा भरी थी, दया का सागर लहरा रहा था। ___ भगवान् महावीर की भाँति तथागत बुद्ध भो श्रमण-संस्कृति के एक महान प्रतिनिधि थे। उन्होंने सामाजिक और राजनीतिक कारणों से होने वाली हिंसा को आग को प्रेम और शान्ति के जल से शान्त करने के सफल प्रयोग किये, और इस आस्था को सुदृढ़ बनाया कि समस्या का प्रतिकार सिर्फ तलवार ही नहीं, प्रेम और सद्भाव भी है। यही अहिंसा का मार्ग वस्तुतः शान्ति और समृद्धि का मार्ग है। वैदिकधर्म में अहिंसा-भावना :
वैदिक धर्म भी यज्ञकाल से उत्तरोत्तर अहिंसा-प्रधान धर्म होता गया है। "अहिंसा परमो धर्मः" के अटल सिद्धान्त को सम्मुख रखकर इसमें भी अहिंसा की विवेचना की गई है। अहिंसा ही सबसे उत्तम एवं पावन धर्म है, अत: मनुष्य को कभी भी, कहीं भी और किसी भी प्राणी की हिंसा नहीं करनी चाहिए । २४ जो कार्य तुम्हें पसन्द नहीं है, उसे दूसरों के लिए कभी न करो। २५ इस नश्वर जीवन में न तो किसी प्राणी की हिंसा करो और न किसी को पीड़ा पहुँचाओ। बल्कि सभी आत्माओं के प्रति मैत्री-भावना स्थापित कर विचरण करते रहो । किसी के साथ वैर न करो ।२६ जैसे मानव को अपने प्राण प्यारे हैं, उसी प्रकार सभी प्राणियों को अपने-अपने प्राण प्यारे हैं। इसलिए जो लोग बुद्धिमान और पुण्यशाली हैं, उन्हें
२४. अहिंसा परमो धर्मः सर्वप्राणभृतांवरः। तस्मात् प्राणमृतः सर्वान् म हिस्यान्मानुषः क्वचित् ।।
-महाभारत-आदिपर्व, ११११३ २५. आत्मनः प्रतिकूलानि परेषा न समाचरेत् ।
. -मनुस्मृति २६. न हिंस्यात् सर्व भूतानि, मैत्रायणगतश्चरेत् । नेदं जीवितमासाद्य वैरं कुर्वीत केनचित् ।।
--महाभारत-शान्ति पर्व २७८।५
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