Book Title: Shraman Sanskruti Siddhant aur Sadhna
Author(s): Kalakumar
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 198
________________ श्रमण संस्कृति के विकास में बिहार की देन : १८५ सक्रिय योगदान देता रहा है। इतिहास-पुरुष का यह एक करिश्मा हो समझिए कि भारत का पूर्वी भाग पश्चिमी भाग की अपेक्षा अधिक क्रान्तिकारी रहा है। भारत में धर्म, दर्शन और संस्कृति के क्षेत्र में जो भी क्रांतियाँ हुई हैं, उनमें पूर्वी भारत, विशेषकर बिहार सबसे आगे रहा है। इतिहास बतलाता है कि आर्यों का पहला दल जो भारत आया था, पूरब की ओर बढ़ता गया और बिहार में बस गया। पीछे आने वाले आर्य स्थान पाकर पश्चिम भारत में ही रह गये । धर्म और दर्शन को लेकर नेतृत्व का झगड़ा पूर्व और पश्चिम भारत में चलने लगा। उपनिषदकाल तक आते-आते भारतीय दर्शन का नेतृत्व बिहार के आर्य ही करने लगे। श्री रामधारीसिंह 'दिनकर' ने 'संस्कृति के चार अध्याय' में 'पूर्वी भारत में क्रान्ति के बीज' उपशीर्षक से लिखा है-"ध्यान देने की बात है कि उपनिषदों के परम उत्कर्ष के समय, विचारों का नेतृत्व पश्चिमी नहीं, पूर्वी भारत के हाथ था और उपनिषदों के एक महान ऋषि याज्ञवल्क्य कहीं बिहार में ही रहते थे।" इससे स्पष्ट हो जाता है कि किस प्रकार पूर्वी भारत के आर्य जड़-परम्परा से हटते रहे और भारतीय संस्कृति की मुख्य धारा में अपने सुचिन्तन और मनन का सुशीतल जल डालकर उसे विशाल और गतिशील बनाते रहे। श्रमण-संस्कृति की मानवतावादी धारा का उदगम पूर्वी भारत विशेषकर बिहार के आर्यों की इसी प्रगतिशीलता की भावना में निहित है, जिसे बिहार के दो अवतारी महापुरुषों ने-वर्द्धमान महावीर और महात्मा बुद्धने अपने तपःपूत एवं साधनामय पावन जीवन के शुभ्र आलोकशिखर से निर्झरित किया। अब मैं यह बतलाने का प्रयास करूँगा कि बिहार की पवित्र भूमि ने किस प्रकार श्रमण-संस्कृति की इन दोनों धाराओं-जैन और बौद्ध-धाराओं-को समय-समय पर अपने सुचिन्तन के सुशीतल जल-धार से भरने का प्रयास किया। जैनधारा-श्रमण संस्कृति की जैनधारा बौद्धधारा से अधिक प्राचीन है। इतिहासकारों ने यह सिद्ध कर दिया है कि यह धारा उतनी ही प्राचीन है, जितनी कि वैदिकधारा है। जैन धर्म में २४ तीर्थकर हो गए हैं, जिनमें आदितीर्थङ्कर ऋषभदेव अन्तिम मन नाभिराय के पुत्र थे। इसी से इसका पता लग जाता है कि यह धारा कितनी प्राचीन है । 'ऋग्वेद' में भी जैन धर्म के दो तीथंकरों Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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