Book Title: Shraman Sanskruti Siddhant aur Sadhna
Author(s): Kalakumar
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 203
________________ १६० श्रमण संस्कृति : सिद्धान्त और साधना वेगवान् स्रोत फूटा। यही कारण है कि आज भी विश्व के कोनेकोने से श्रमण, भिक्षु, सन्त, महात्मा एवं पर्यटक इन दोनों स्थानों की यात्रा कर अपने जीवन को धन्य मानते हैं। छठी शताब्दी ई० पू० में वैशाली गणराज्य का बड़ा महत्त्व था। यहां के लोग वीर, उदार, साहसी, सहिष्णु और धार्मिक थे। बौद्ध एवं जैन धर्मों का इन पर इतना प्रभाव पड़ा था कि वे बड़े ही शांत तथा धार्मिक जीवन जी रहे थे। वैशाली की ही राजनर्तको परम सुन्दरी आम्रपाली ने तथागत से दीक्षा ली थी और यहीं पर तथागत ने संघ में भिक्षणियों को शामिल करने का अपना ऐतिहासिक निर्णय किया था। listory of Tirhut' पृष्ठ ४३ में लिखा है-"It may be interesting to mention that it was at vaishali that Budha established the order of nuns at the request of his cousin and disciple Anand and his widowed mother." आज भी श्रमण-संस्कृति के मुख्य आकर्षण-केन्द्र के रूप में वैशाली की ख्याति दूर-दूर के देशों तक में फैली है। यहाँ के खण्डहरों से प्राप्त सिक्के तथा चिह्न जहाँ जैन धर्म और वैशाली गणराज्य की विशेषताओं को बतलाते हैं, वहाँ वैशालो के स्तूप तथा अन्य अवशेष बौद्ध-धर्म के प्राचीन वैभव और उसकी गरिमा को प्रकट कर रहे हैं। . बिहार राज्य का तिरहत प्रमण्डल, विशेषकर चम्पारण जिला बौद्ध धर्म के अनेक अवशेषों को बचाये हुए है। कहा जाता है कि गौतम जब कपिलवस्तु को छोड़कर ज्ञान और मूक्ति की खोज में चले थे, तब अनोमा नदी तक उनका सारथी छन्दक भी आया था। अनोमा नदी पार कर गौतम चम्पारण के नन्दनगढ़ लौरिया, बेतिया, अरेराज लौरिया, गोविन्दगंज-संग्रामपुर, केशरिया होते हुए वैशाली के रास्ते गङ्गा पार कर मगध पहुंचे थे। और फिर ई० पू० ४८७ में महापरिनिर्वाण के लिए कुशीनगर जाते समय वैशाली होते हुए चम्पारण के इन्हीं उपर्युक्त स्थानों से होकर गुजरे थे। वैशाली के निवासी तथागत के साथ चम्पारण जिले के केशरिया तक आये थे, जहाँ भगवान बुद्ध ने उनसे बिदा ली थी। यहीं पर भगवान बुद्ध ने उन लोगों को अपना भिक्षा-पात्र प्रदान किया Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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