________________
भ. महावीर और बुद्ध के पारिपाश्विक भिक्षु भिक्षुणियाँ
त्रिपिटक साहित्य में बुद्ध के पारिपाश्विक भिक्षुओं का भी पर्याप्त विवरण मिल जाता है । सारिपुत्र, मौद्गल्यायन, आनन्द, उपालि महाकाश्यप, आज्ञाकौण्डिन्य आदि भिक्षु बुद्ध के अग्रगण्य शिष्य थे । जैन - परम्परा में गणधरों का एक गौरवपूर्ण पद है और उनका व्यवस्थित दायित्व होता है । बौद्ध परम्परा में गणधर जैसा कोई सुनिश्चित पद नहीं है, पर सारिपुत्र आदि का बौद्ध भिक्षु संघ में गणधरों जैसा हो गौरव व दायित्व था ।
सारिपुत्र :
I
गणधर गौतम की तरह सारिपुत्र भी बुद्ध के अनन्य सहचरों में थे । वे बहुत सूझ-बूझ के धनी, विद्वान् और व्याख्याता थे । बुद्ध इन पर बहुत भरोसा रखते थे । एक प्रसंग - विशेष पर बुद्ध ने इनको कहा था - "सारिपुत्र ! तुम जिस दिशा में जाते हो, उतना ही आलोक करते हो, जितना कि बुद्ध । ४
सारिपुत्र की सूझ-बूझ का एक अनूठा उदाहरण त्रिपिटक साहित्य में मिलता है । बुद्ध का विरोधी शिष्य देवदत्त जब ५०० वज्जी भिक्षुओं को साथ लेकर भिक्षु संघ से पृथक् हो जाता है, तो मुख्यतः सारिपुत्र ही अपने बुद्धि-कौशल से उन पाँचसौ भिक्षुओं को देवदत्त के चुंगल से निकाल कर बुद्ध की शरण में लाते हैं ।"
एकबार बुद्ध ने आनंद से पूछा - "तुम्हें सारिपुत्र सुहाता है न ?" आनन्द ने कहा- "भन्ते ! मूर्ख, दुष्ट और विक्षिप्त मनुष्य को छोड़कर ऐसा कौन मनुष्य होगा, जिसे आयुष्मान् सारिपुत्र न सुहाते हों । आयुष्मान् सारिपुत्र महाज्ञानी हैं, महाप्राज्ञ हैं । उनकी प्रज्ञा अत्यन्त प्रसन्न व अत्यन्त तीव्र है ।"
८५
सारिपुत्र के निधन पर बुद्ध कहते हैं - "आज धर्मरूप कल्पवृक्ष की एक विशाल शाखा टूट गई है ।" बुद्ध सारिपुत्र को धर्म सेनापति भी कहा करते थे ।
४. अंगुत्तर निकाय, अट्ठकथा, ११४|१ |
५. विनयपिटक, चुल्लवग्ग, संघ-भेदक- खन्धक
६. संयुत्तनिकाय, अनाथपिण्डिकवग्ग, सुसिम सुत्त ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org