Book Title: Shraman Sanskruti Siddhant aur Sadhna
Author(s): Kalakumar
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 191
________________ १७८ श्रमण संस्कृति : सिद्धान्त और साधना मुक्ति, निर्वाण । जब हम जैनदर्शन को गहराई में पहुँचते हैं तो हमें ज्ञात होता है कि साधना के विषय पर कितनी सूक्ष्मता से चिन्तनमनन किया गया है। ऊपर-ऊपर से देखें तो ऐसा लगता है कि मुक्ति ( साध्य ) प्राप्ति के मार्ग ( साधन ) जैन-दर्शन में अनेकों दर्शाए गए हैं। कहीं पर ज्ञान, दर्शन, चारित्र और तप इन चारों को मोक्ष का मार्ग बताया गया है ।७२ तो कहीं पर ज्ञान दर्शन, चारित्र-इन तीनों को मूक्तिमार्ग बताया है ७३ और कहीं पर केवल ज्ञान और चारित्र से ही मुक्ति प्राप्ति कराई गई है।०४ पर वास्तव में इन में कोई भेद नहीं है। यह विविधता केवल समझाने के लिए है। तप का अन्तर्भाव चारित्र में कर लेने पर साधता त्रिरूप होती है क्योंकि जिस साधना से पापकर्म तप्त होता है, वह तप है ७५ और चारित्र भी तो कर्मनाश करता ही है; अज्ञान से संचित कर्मों के उपचय को रिक्त करना चारित्र है।७६ अतः तप का अन्तर्भाव चारित्र में हो जाता है। दर्शन का अन्तर्भाव ज्ञान में कर देने पर साधना द्विरूप होती है। क्योंकि दर्शन अर्थात श्रद्धा के अभाव में ज्ञान, सम्यज्ञान नहीं हो सकता है। अतएव ज्ञान शब्द से ज्ञान ७२. नाणं च दंसणं चेव, चरित्तं च तवो तहा। एस मग्गो त्ति पन्नत्तो, जिणेहिं वरदंसिहि । -उत्तरा० २८।२ ७३. (क) सम्यग्दर्शनज्ञानचारित्राणि मोक्षमार्गः। -तत्त्वार्थसूत्र ११ (ख) तिविहे सम्मे पण्णत्ते, तंजहा-णाणसम्मे, दंसणसम्मे, चरित्तसम्मे। -स्थानांग ३।४।११४ (ग) परमार्थतस्तु ज्ञानदर्शनचारित्राणि मोक्षकारणं, न लिंगादीनि । -उत्त० चू० २३ ७४. (क) आहंसु विज्जाचरणं पमोक्खं । -सूत्रकृताङ्ग सूत्र १।१२।११ (ख) दुविहे धम्मे-सुयधम्मे चेव चरित्तधम्मे चेव । -स्थानांग २११ (ग) नाणेण य करणेण य दोहिं वि दुक्खक्खयं होइ । (घ) नाणकिरियाहिं मोक्खो। -विशेषावश्यक भाष्य, गाथा ३ -मरणसमाधि १४७ ७५. तप्पते अणेण पावं कम्ममिति तपो। -निशीथचूणि ४६ ७६. अण्णाणोवचियस्स कम्मचयस्स रित्तीकरणं चारित्तं। -निशीथ चूणि ४६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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