Book Title: Shraman Sanskruti Siddhant aur Sadhna
Author(s): Kalakumar
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 195
________________ १८२ श्रमण संस्कृति : सिद्धान्त और साधना स्वर्गारोहण के लिए शील के समान दूसरा सोपान कहाँ है ? निर्वाणरूपी नगर में प्रवेश करने के लिए भी शील के समान दूसरा द्वार कहाँ है ? ९९ जैन, बौद्ध एवं वैदिक संस्कृति के समवेत स्वर : वैदिक-धारा में जिस प्रकार साधना के तीन रूप हैं-ज्ञान, कम और भक्ति, बौद्ध धारा में जिस प्रकार से साधना के तीन रूप हैं श्रद्धा, प्रज्ञा और शील, उसी प्रकार जैन-धारा को अध्यात्म-साधना में सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यकचारित्र-इन तीनों का गौरवपूर्ण स्थान है। क्योंकि ज्ञान से भावों (पदार्थों) का सम्यग्बोध होता है, दर्शन से श्रद्धा होती है, चारित्र से कर्मों का निरोध होता है और तप से आत्मा निर्मल होती है । १०° साध्वी मंजु श्रीजी ६६. सग्गारोहण सोपानं अझं सीलसमं कुतो? द्वारं वा पन निब्बान-नगरस्स पवेसने। -विसुद्धिमग्ग १।२४ १००. नाणेण जाणइ भावे, दमणेण य सद्दहे ।। चरित्रोण निगिण्हाइ, तवेण परिसुज्झइ ॥ -उत्तराध्ययन २८॥३५ ० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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