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भ. महावीर और बुद्ध के पारिपाश्विक भिक्षु भिक्षुणियाँ
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महावीर ने अंगुष्ठ- स्पर्श से जैसे समग्र मेरु पर्वत को प्रकम्पित कर इन्द्र को प्रभावित किया; बौद्ध परम्परा में मौद्गल्यायन द्वारा वैजयन्तप्रासाद को अंगुष्ठ- स्पर्श से प्रकम्पित कर इन्द्र को प्रभावित कर देने की बात कही जाती है । १५ कहा जाता है, एकबार बुद्ध, मौद्गल्यायन प्रभृति पूर्वाराम के ऊपरी भौम में थे । प्रासाद के नीचे कुछ प्रमादी भिक्ष वार्ता, उपहास आदि कर रहे थे । उनका ध्यान खींचने के लिए मौद्गल्यायन ने अपने ऋद्धि-बल से सारे प्रासाद को प्रकम्पित कर दिया। संविग्न और रोमांचित उन प्रमादी भिक्षुओं को बुद्ध ने उद्बोधन दिया । १२
औपपातिक सूत्र में महावीर के पारिपाश्विक भिक्षुओं के विषय में बताया गया है :
१. अनेक भिक्षु ऐसे थे, जो मन से भी किसी को अभिशप्त और अनुगृहीत कर सकते थे ।
२. अनेक भिक्षु ऐसे थे, जो वचन से ऐसा कर सकते थे । ३. अनेक भिक्षु ऐसे थे, जो कायिक- प्रवर्तन से ऐसा कर सकते थे ।
४. अनेक भिक्षु श्लेष्मोषधलब्धि वाले थे । उनसे श्लेष्म से ही सभी प्रकार के रोग मिटते थे ।
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५. अनेक भिक्षु जल्लोषध लब्धि के धारक थे । उनके शरीर के मैल से दूसरों के रोग मिटते थे ।
६. अनेक भिक्षु विप्रुषौषधलब्धि के धारक थे। उनके प्रस्रवण की बूँद भी रोग नाशक होती थी ।
७. अनेक भिक्षु आमषौषधलब्धि के धारक थे। उनके हाथ
के स्पर्श मात्र से रोग मिट जाते थे ।
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८. अनेक भिक्षु सर्वोषधलब्धि वाले थे । उनके केश, नख, रोम आदि सभी औषधिरूप होते थे ।
६. अनेक भिक्षु पदानुसारीलब्धि के धारक थे, जो एक पद के श्रवण मात्र से अनेकानेक पदों का स्मरण कर लेते थे ।
११. मज्झिमनिकाय, चुलतण्हासंखय सुत्त ।
१२. संयुत्तनिकाय, महावग्ग, ऋद्धिपाद, संयुत्त प्रासाद कम्पनत्रग्ग,
मोग्गलान सुत्त ।
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