Book Title: Shraman Sanskruti Siddhant aur Sadhna
Author(s): Kalakumar
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 181
________________ १६८ श्रमण संस्कृति : सिद्धान्त और साधना को जय प्राप्त होती है । १८ अतएव बिना किसी दण्ड और शस्त्र के, केवल अहिंसा के बल पर ही पृथ्वी को जीतना चाहिए । १९ ___ अहिंसा को दूसरे शब्दों में करुणा भी कहा जा सकता है और जब हम इस शब्द की व्युत्पत्ति पर विचार करते हैं तो प्रतीत होता है कि 'दूसरे का दु:ख होने पर जो सज्जनो के हृदय को कँपा दे, उसे करुणा कहते हैं। दूसरे के दुःख को खरीद लेती है अथवा नष्ट कर देती है, इसलिए भी करुणा, करुणा है । २० इस प्रकार अहिंसा-सिद्धान्त का पर्यालोचन करते हुए हम इस निष्कर्ष पर पहुंचते हैं कि अहिंसा की प्रतिष्ठा के लिए हमें अपने हृदय में प्राणिमात्र के उत्कर्ष, विकास और कल्याण की मङ्गलमयी भावना को उबुद्ध करना चाहिए। विश्व के समस्त प्राणियों के साथ असीम मैत्री की भावना को बढ़ाना चाहिए।१।। ___'विश्व के सब प्राणो सुखी हों',२२ 'सुमन हों, प्रसन्न हो',२3 'वैर से रहित हों, कोई वैर न रखे। कोई दुःख न पाए।' २४ अनासक्तिपूर्ण कर्ममार्ग : वैदिक-धारा _ 'कर्मण्येवाधिकारस्ते, मा फलेषु कदाचन। ___ मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते संगोऽस्त्वकर्मलि ॥२॥४७॥ इस प्रसिद्ध श्लोक में अनासक्ति का मूल सिद्धान्त विद्यमान है। यह श्लोक इस संसार में मनुष्य को ऐसा पूर्ण सक्रिय जीवन बिताने १८. जेतारं लभते जयं । --संयुत्तनि काय १।३।१५ १६. अदण्डेन असत्थेन, विजेय्य पथवि इमं। -अंगुत्तरनिकाय ७६।६ २०. परदुक्खे सति साधूनं हृदय-कम्पनं करोतीति करुणा । किणाति वा परदुक्खं, हिंसति विनासेतीति करुणा ॥ ___-विसुद्धिमग्न ६६२ २१. मेत्त च सव्वलोकस्मि, मानस भावये अपरिमाणं । -सुत्तनिपात १८ २२. सव्वे सत्ता भवन्तु सुखिवतत्ता। -सुत्तनिपात १८३ २३. सब्वे व भूता सुमना भवन्तु । -खुद्दक पाठ ६११ २४. सव्वे सत्ता अवेरिनो होन्तु, मा वेरिनो । सुखिनो होन्तु, मा दुविखनो। -पटिसम्भिदामग्गो ।२।४।२।६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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