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श्रमण संस्कृति : सिद्धान्त और साधना प्रकीर्ण रूप से भी अनेकानेक भिक्षु-भिक्षुणियों के जीवन-प्रसंग आगम-साहित्य में बिखरे पड़े हैं, जिनसे उनकी विशेषताओं का पर्याप्त ब्योरा मिल जाता है। काकन्दी के धन्य :
काकन्दी के धन्य बत्तीस परिणीता पत्नियों और बत्तीस महलों को छोड़कर भिक्ष हए थे। महावीर के साथ रहते हुए उन्होंने इतना तप तपा कि उनका शरीर केवल अस्थि-कंकाल मात्र रह गया था। राजा बिम्बिसार के द्वारा पूछे जाने पर महावीर ने उनके विषय में कहा--"अभी यह धन्य भिक्ष अपने तप से, अपनी साधना से चतुर्दश सहस्र भिक्ष ओं में दुष्कर क्रिया करने वाला है।"८१ मेघकुमार :
बिम्बिसार के पुत्र मेधकुमार दीक्षा-पर्याय की प्रथम रात में संयम से विचलित हो गये। उन्हें लगा. कल तक जब मैं राजकुमार था, सभी भिक्ष मेरा आदर करते थे, स्नेह दिखलाते थे। आज मैं भिक्ष हो गया, तो मेरा वह आदर कहाँ ? मुंह टालकर भिक्ष इधरउधर अपने कामों में दौड़े जाते हैं। सदा की तरह मेरे पास आकर कोई जमा नहीं हुए। शयन का स्थान मुझे अन्तिम मिला है । द्वार से निकलते और आते भिक्ष मेरी नींद उड़ाते हैं। मेरे साथ यह कैसा व्यवहार ? प्रभात होते ही मैं भगवान महावीर को उनकी दी हई प्रव्रज्या वापस करूँगा। प्रातःकाल ज्यों ही वह महावीर के सम्मुख आया, महावीर ने अपने ही ज्ञान-बल से कहा-"मेघकुमार! रात को तेरे मन में ये-ये चिन्ताएँ उत्पन्न हुई ? तुमने पात्र-रजोहरण आदि सँभलाकर घर जाने का निश्चय किया ?" मेघकुमार ने कहा-"भगवन् ! आप सत्य कहते हैं।" महावीर ने उन्हें संयमारूढ़
८१. इमेसिणं भन्ते ! इंदभूई पामोक्खाणं च उदसण्ह समण साहसीण कयरे
अणगारे महादुक्करकारए चेव महाणिज्जरकारए चेव ? एवं खलु सेणिया। इमीसि इंदभूई पामोक्खाणं च उदसण्हं समणसाहसीणं धन्ने अणगारे महादुक्कर कारए चेवं महानिज्जरकारए चेव ।।
-अणुत्तरोववाई दशांग, वर्ग० ३, अ० १॥
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