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श्रमण भगवान् महावीर
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महाशतक से कहो कि "एक धामिक और सच्चरित्र श्रावक को इस प्रकार कटुवाणी नहीं बोलनो चाहिए। वह तो आखिर उसकी पत्नी है, किन्तु किसी को भी ऐसा आक्रोश वचन नहीं कहना चाहिए !"
गणधर गौतम के समझाने पर महाशतक ने अपनी भूल के लिए क्षमा याचना की !
यह था महावीर का विश्वास और प्रेम का मंत्र, जो केवल साधक के लिए ही नहीं, अपितु प्रत्येक सामाजिक के लिए आवश्यक था। जो साधक घर, परिवार और समाज में विश्वास तथा प्रेम पैदा न कर सके, तो क्या उसका विश्वास एवं प्रेम केवल जंगल की साधना के लिए है ? महावीर का उपदेश था-'जहाँ भी रहो, परस्पर विश्वास लेकर रहो, प्रेम पूर्वक रहो। न किसी के चरित्र पर लांछन लगाओ। २ न किसी के मर्म पर चोट करो और न कभी किसी को कष्ट एवं त्रास देने वाली बात मुंह से निकालो।" ४ राजनीतिक उलझन : सद्भाव की अपेक्षा :
पारिवारिक जीवन की भाँति राजनीतिक जीवन की भी अनेक उलझनें महावीर के समक्ष आई हैं, और उनका सद्भावमूलक समाधान भी महावीर ने किया है । यह तात्कालिक घटनाओं से समझ में आ सकता है। ___ मगध, विदेह, वैशाली, चेदि, वत्स, कलिंग, उज्जयिनी और सिंधु सौवीर तक के राजवंश महावीर के श्रद्धालु ही नहीं, बल्कि परम भक्त थे। उनका धार्मिक जीवन ही नहीं, अपितु राजनीतिक जीवन भी महावीर के प्रभाव से अछूता नहीं रहा। महावीर ने कई बार बड़ेबड़े युद्धों को टाल दिया, एक-दूसरे राज्यों के पारस्परिक मनमुटाव एवं विद्वष को प्रेम में बदल दिया, और उन्हें दुश्मन की जगह मित्र बना दिया।
२. दशवकालिक १०।१८ ३. सूत्र कृतांग १।९।२५ ४, दशवकालिक १०।१०
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