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श्रमण भगवान् महावीर
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श्रमण महावीर की साधना का यह चमत्कार था कि वे भय को अभय में बदल देते, विष को अमृत बना देते । और आग बरसाने वालों को शीतल जल बना देते । उनका साधक जीवन देहली पर रखे दीपक की तरह उभयमुखी था । वे स्वयं के आत्मोत्कर्ष के लिए सदा जागरूक रहते और साथ ही विश्व के भय एवं संकटों को शांत करते जाते । उनकी लोकोपकारी वृत्ति कभी-कभी इतनी प्रबल हो उठती थी कि आज कुछ लोग जिन आचारसूत्रों को विधिनिषेध को गणना में लेते हैं, महावीर की सहज मानवता उन्हें भी लांघ गई थी ।
गोशालक, जो महावीर की दिव्य विभूतियों से प्रभावित होकर उनके पीछे-पीछे चलने लगा था, वह उन्हें अपना गुरु भी मानने लगा था । पर, वह कुछ उच्छृंखल और अल्हड़ प्रकृति का था । उसकी विवेकहीनता एवं उच्छृंखलता के कारण श्रमण महावीर को अनेक अकल्पित कष्ट भी उठाने पड़े, पर श्रमण महावीर ने कभी भी गोशालक को दुत्कारा नहीं, उसकी मूर्खता पर रोष नहीं किया ।
एकबार गोशालक ने अपनी आदत के अनुसार किसी तपस्वी से छेड़छाड़ की । तपस्वी काफी शांत रहा, पर अन्त में जब गोशालक छेड़छाड़ से बाज नहीं आया तो वह क्रुद्ध हो उठा । क्रुद्ध तपस्वी ने गोशालक को भस्म करने के लिए 'तेजोलेश्या' - एक प्रकार की यौगिक दाहक शक्ति का प्रयोग किया । गौशालक चीखताचिल्लाता श्रमण महावीर के चरणों में आ गिरा - बचाइए ! बचाइए !!
श्रमण महावीर ने धुँए के गुब्बारे-सी उमड़कर गौशालक का पीछा करती हुई तेजो लेश्या को आते देखा तो एक सहज करुणा से उनका मन भर आया । यद्यपि गोशालक एक कुशिष्य की तरह महावीर को हमेशा सताता रहा, पर कारुणिक महावीर उसके सब अपराधों को जैसे भूले हुए थे । तुरन्त अपनी योग लब्धि से 'शीतल लेश्या' का प्रयोग किया । तपस्वी की क्रोधाग्नि शांत हो गई और मंखलिपुत्र गोशालक बच गया ।
श्रमण महावीर के दीर्घ तपस्वी काल में इस प्रकार के कितने ही प्रसंग आए होंगे जब उनके साहस, धैर्य तथा मनोबल की कठोर परीक्षाएँ
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