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श्रमण संस्कृति का धरातल और उसको परम्परा
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परिव्राजक भा एक पृथक् अथवा सामान्य सम्प्रदाय था । और भी अनेक सम्प्रदाय थे, पर वे उत्तरकाल में लुप्तप्राय हो चुके थे । ३६३ मत इस प्रकार हैं
निर्जरा, मोक्ष, पुण्य और पाप - ये अनुसार ये नव पदार्थ स्वतः और हैं । पुनः सभी पदार्थ नित्य और
१. क्रियावाद - यह दर्शन जीव, अजीव आश्रव, बन्ध, संवर, नव पदार्थ मानता है । उसके परत: के भेद से दो प्रकार के अनित्य होते हैं - ६x२= १८४२ ३६ । ये ३६ पदार्थ काल, स्वभाव, नियति ईश्वर और आत्मा के भेद से पाँच प्रकार के हैं- ३६×५ = १८० । इस प्रकार क्रियावाद के कुल भेद १८० हुए ।
२. अक्रियावाद इस दर्शन के अनुसार पुण्य और पाप का स्थान जीवन में कुछ भी नहीं । अतः इनके मत से कुल सात पदार्थ हुए । इनके दो भेद हैं- स्वतः और परतः । पुनः काल, यदृच्छा, नियति, स्वभाव, ईश्वर और आत्मा - ये ६ भेद हैं । इस प्रकार अक्रियावाद के कुल ७२x६ ८४ भेद हुए ।
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"कालयच्छानियतिस्वभावेश्वरात्मनश्वतुरशीतिः । नास्तिक्लादिगणमते न सन्ति भावा स्वपर संस्थाः । ८
३. अज्ञानवाद -- इस दर्शन में उक्त नव पदार्थ स्वीकृत हैं । ये सभी पदार्थ सत्, असत्, सदसत् अवक्तव्य, सदवक्तव्य, असदवक्तव्य, सदसदवक्तव्य के भेद से सात प्रकार के हैं । इनके अतिरिक्त सती भावोत्पत्ति: को वेत्ति ? किं वाऽनया ज्ञातया ? २. असतो भावोत्पत्ति को वेत्ति ? किं वाऽनया ज्ञातया ? ३. सदसती भावोत्पत्ति को वेत्ति ? किं वाऽनया ज्ञातया ? ४. अवक्तव्या भावोत्पत्तिः को वेत्तिः ? किं वाऽनया ज्ञातया ? ये चार भेद भी हैं । इस प्रकार ६ × ७ + ४ = ६७ भेद अज्ञानवाद के हैं ।
"अज्ञानकवादिमतं नव जीवादीन् सदादिसप्तविधान् । भावोत्पत्तिः सदसद्व द्याऽवाच्या च को वेत्ति ॥ ९
८. सूत्रकृतांग १, १२. १५ वृ० पृ० २०६२ ६. वही, ११२, १५ वृ० पृ० २०६
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