Book Title: Shalopayogi Jain Prashnottara 02
Author(s): Dharshi Gulabchand Sanghani
Publisher: Kamdar Zaverchand Jadhavji Ajmer

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Page 12
________________ उत्तरः उन नगरों में रत्न जड़ित बड़े बड़े आवास हैं वे सब सूर्य के माफिक देदीप्यमान हो रहे हैं दोयम देवता देविओं के शरीर का वाभरणादिक का भी भारी उद्योत होता है जिससे वहां अंधकार रहन नहीं पाता? (१४) प्रश्नः अपन कभी इन नगरों में देवता पने उत्पन्न हुए होंगे या नहीं ? उत्तरः हां अपन भी अनंती दफे देवता व देवी पने उन नगरों में उत्पन्न हो चुके हैं. (१५) प्रश्न: कैसे मनुष्यों को वाणव्यंतरादि देवों भी सदा नमने भजते रहते हैं और कुछ भी उप सगे (परिषह व दुःख) नहि कर सकते हैं ? उत्तरः तीर्थकर, चक्रवति, बलदेव, वासुदेव, उत्तम साधु साधवी और ब्रह्मचारी यानि शुद्ध शियल व्रत पालने वाले स्त्री पुरुषों को देवताओं भी नमस्कार करते हैं और किसी भी प्रकार का उपसर्ग नहीं कर सकते हैं. (१६) प्रश्नः जीव के ५६३ भेद में वाणब्यंतर के कि. . तने भेद हैं ? उत्तरः बावन ( सोलह वाण ब्यंतर व दश मुंभ का इन २६ के अपर्याप्ता व पर्याप्ता मिलकर ५२).

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