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(६४) - सारे ही गोला में अग्नि प्रविष्ट हो जाती है
उसी तरह से कर्म पुद्गल भी आत्म प्रदेश के
साथ मिल जाते हैं। (४) प्रश्नः आत्मा, कर्म पुद्गल को किस तरह से ग्रहण
. ... करता है. ? . . .. उत्तरः मन, वचन, काया, और कर्म ये चार साधन
से. मन, वचन, व.काया के योग* से जीव . कर्म ग्रहण करता है व क्रोधादिक कषायों
...से उसमें रस पड़ता है. (५) प्रश्नः बंधन कितने प्रकार का. है ? ..., उत्तरः १ प्रकृति वंध, कर्मका स्वभाव अथवा
. .. परिणाम २- स्थिति वंध-काल की मर्यादा ...... .. . . ३ अनुभाग बंध-रस (तीव्र मंद वगेरे )
४ प्रदेश बंध-कर्म पुद्गल का दल. (६) प्रश्नः बंध के ये चार स्वरूप मिशाल देकर .. .समझाइए ? . - उत्तरः लड्डू की मिशाल, जैसे कोई वैद्य विविध ... औषधियों से अनेक जाति के लड्डू बनाते हैं
इसमें कोई लड्डू का ऐसा गुण या स्वभाव
होता है कि उसके खाने से वायु के रोग . *नोट-जव हम अच्छे २ विचार करते हैं तब आत्मा स्वाभाविक रीति से शुभ पुद्गल ग्रहण करता है। इस तरह से शुभ वचन,व शुभकाय योग से भी पुण्य की प्राप्ति होती है व इन ही तीन योगों की अशुभ. प्रवृत्ति से पाप की प्राप्ति होती है। .
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