Book Title: Shalopayogi Jain Prashnottara 02
Author(s): Dharshi Gulabchand Sanghani
Publisher: Kamdar Zaverchand Jadhavji Ajmer

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Page 77
________________ (७१) उत्तरः यह वात बहुत समझने योग्य है, सुखका आधार वाह्य साधन पर नहीं है मगर मनकी परिस्थिति उपर है. कई दफा नवकांकरी जैसे निर्माल्य साधन से रंक मनुष्य को जो सुखका अनुभव होता है वह सुख राज्यकी विभूति होने पर भी रानाको अनुभूत नहीं होता है. सुख यह आत्मा का ही गुण है वह बाहर से प्राप्त होता ही नहीं, जड़ वस्तु ही चेतन को सुख देती है यह मान्यता . . गलत है। खीर चाहे जितनी अच्छी बनी हो. वे मगर अपनी जिहा में उसका स्वाद जा. नने को गुण यदि न होता तो वह अपने को सुख कैसे दे सकती? पुद्गल के अनंत गुणों में से एक अथवा अधिक गुण को जान कर वह दूसरे पदार्थ की अपेक्षा अपनी मानसिक प्रकृति को विशेष अनुकूल होने से जीव उसको सुख रूप मानने लग जाता है परन्तु दूसरे पल में ही उसकी अपेक्षा विशेष मनोज्ञ दूसरी चीज यदि मिल जाय तो उस दूसरी की अपेक्षा पहली चीज दुःख रूप हो जाती है। जो गजी के कपड़े व जुवार के रूखे व सूके टुकड़े को एक भिक्षुक सुख समझता है वही चीज एक राजा को दुःख रूप मालूम होती है, सारांश यह है कि जड़ वस्तु के उपर सुख दुःख का प्राधार नहीं है मगर अपनी खुदकी मान्यता के उपर है. (१३) मनः तब सिद्ध भगवान को क्या सुख है और वह किस तरह होता है ? .

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