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(६६) कर्मों के लेपसे लिप्त होकर संसार समुद्र में डूबे हुए जीव जब कर्मों से मुक्त होता है तब स्वाभाविक रीत्या वह लोकके मस्तिष्क पर पहुंच जाता है और अलोक के नीचे
स्थिर होता है. (७) प्रश्नः मोक्ष पाये हुए आत्मा कहां पर विराजमा
न होते हैं ? उत्तरः सर्वार्थसिद्ध विमान की ध्वजा से २१ जो
जन ऊंचे उर्ध्वलोक का अन्त आता है और वहाँसे उर्ध्व अलोक शुरु होता है, अलोक में धर्मास्ति काय, अधर्मास्ति काय, द्रव्यका अभाव होने से जीव व पुद्गल द्रव्यकी गति या स्थिति वहां पर नहीं हो सकती है जिस से सिद्ध भगवान् लोक के अखीरी चर्मान्त
तक पहुंच कर वहां है। स्थिर होते हैं. (८) प्रश्नः सिद्ध भगवान् के और अलोक के बीच में
कितना अन्तर है ? उत्तरः धूप व छाया के बीच में जैसे अन्तर नहीं
होता है ठीक उसी तरह सिद्ध भगवंत और
अलोक के बीच में अन्तर नहीं होता है। (६) प्रश्नः सिद्ध भगवंत का शरीर है या नहीं ? उत्तरः सिद्ध भगवान् अशरीरी है, वे पुगल के-जड़
वस्तु के संग रहित होकर केवल आत्म. स्वरूप में चौदह राजलोक का नाटक देखते
. हुए अनंत सुख की लहर में विराजित हैं. (१०) प्रश्नः वहाँ पर खाना, पीना, पहेनना, ओढ़ना,