Book Title: Shalopayogi Jain Prashnottara 02
Author(s): Dharshi Gulabchand Sanghani
Publisher: Kamdar Zaverchand Jadhavji Ajmer

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Page 72
________________ है, इस तरह से कर्म का उदय आने से किसी का फल जीव को मीठा लगता है व किसी का खारा लगता है किसी में कम दुःख और ज्यादा सुख और किसी में कम सुख और ज्यादा दुःख की प्राप्ति होती है इस तरह से जो भेद देखने में आता है उसको रस याने अनुभाग बंध कहते हैं। . . ४ प्रदेशबंध-अब जैसे उपरोक्त लड्डू में कोई लड्डू में द्रव्य का परिमाण थोड़ा होवे और किसी में अधिक होवे उसी तरह कोई बंध में कर्म वर्गणा योग्य पुद्गलों के अनंत प्रदेशी स्कंधों का परिमाण थोड़ा होवे और. किसी में ज्यादे होवे उस प्रकार को प्रदेशबंध कहते हैं। (७.) प्रश्नः बंध तत्व जीव को हितकारी है या अहि- . तकारी? . उत्तरः अहितकारी और छोड़ने त्यागने) योग्य है। (८) प्रश्नः कर्म बंधन से हम कैसे बच सकते हैं? उत्तरः राग द्वेष छोड़ने से विषय और कषाय का परित्याग करने से, सर्व जीवों को अपनी आत्मा समान गिनने से, और विवेक तथा यत्न पूर्वक हरएक कार्य करने से जीव पापकर्म के बंधन से बच सकता है।

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