Book Title: Shalopayogi Jain Prashnottara 02
Author(s): Dharshi Gulabchand Sanghani
Publisher: Kamdar Zaverchand Jadhavji Ajmer

View full book text
Previous | Next

Page 24
________________ (८४) (१४) प्रश्नः कर्म आते हैं उनकी रुकावट किस तरह से हो.सक्की हैं ? उत्तरः श्राश्रव रूप द्वार बंध करने से. (१५) प्रश्नः आश्रव रूप द्वार कैसे बंध होसक्का हैं ? उत्तरः सर्वज्ञ प्रणित शास्त्र द्वारा तत्व ज्ञान ग्रहण कर उसपर पूर्ण श्रद्धा रखने से समकित की प्राप्ति होती है समकित की प्राप्ति होने के पश्चात् व्रत पच्चखाण करने से व विषय क पाय छोडने से कर्म की रुकावट हो सक्ती है. (१६) प्रश्नः जिससे कर्म की रुकावट होती है उसको क्या कहते हैं ? उत्तरः संवर (आश्रव से संवर बिलकुल ही प्रति पक्षी है) (१७) प्रश्नः संवर के कितने प्रकार हैं ? उत्तरः पांच.-सम्यक्त्व, विरतिपन, अप्रमाद अ कषाय, व शुभ जोग. * (१८) प्रश्नः सम्यक्त्व की प्राप्ति कैसे हो सकती है और उससे क्या लाभ ? उत्तरः तीर्थकर मणित शास्त्रों का विवेक पूर्वक अभ्यास कर तत्वज्ञान ग्रहण करने से व - *शुभ जोग को निश्चय नय से आश्रय कहते हैं मगर पुण्य बंधन का हेतु व मोक्ष की प्राप्ति में साधन भूत होने से व्यवहार नय से उसको संबर में गिने जाते है निश्चय नय से अजोगीपना सन्न गिना जाता है.

Loading...

Page Navigation
1 ... 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85