Book Title: Shalopayogi Jain Prashnottara 02
Author(s): Dharshi Gulabchand Sanghani
Publisher: Kamdar Zaverchand Jadhavji Ajmer

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Page 57
________________ (५१) सम्यग् दर्शन व सम्यक् चारित्र से कर्म बंधन को तोड़ कर मुक्त हो सकते हैं मगर सभी नहीं. . (११) प्रश्नः लोक में भव्य जीव ज्यादा है या अभव्य ? उत्तरः अभव्य जीव से भव्य जीव अनंत गुण अधिक है. (१२) प्रश्नः अभव्य जीव क्या जैनधर्म प्राप्त करते हैं ? उत्तरः अभव्य जीव भी श्रावक के व साधुजी के व्रत धारण करते हैं सूत्र सिद्धांत पढ़ते हैं तथा अनेक प्रकार की वाह्य क्रिया भी करते हैं तब भी उनको सम्यगज्ञान, सभ्यम् दर्शन व सम्यक् चारित्र की प्राप्ति होती ही नहीं, व इस कारण से ज्ञानी की दृष्टि में वे अज्ञानी व मिथ्यात्वी हैं। (१३) प्रश्नः वे बाह्य करणी करते हैं उसका फल उन को मिलना है क्या ? उत्तरः हां, अच्छी करणी का अच्छा व बुरी करणी का बुरा फल मिले बिना रहता ही नहीं अभव्यजीव भी साधु के व्रत पाल कर नवम ग्रीवेयक तक जा सक्त हैं। . ॥दोहा ॥ . कोटि उपाये कर्मनां, फल मिथ्या नहीं थाय । समझी सरधी सत्य श्रा, कृत्य करो पछी भाई ॥ .

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