Book Title: Shalopayogi Jain Prashnottara 02
Author(s): Dharshi Gulabchand Sanghani
Publisher: Kamdar Zaverchand Jadhavji Ajmer

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Page 56
________________ कभी मिलेगा ही नहीं और भव्य जीवों में से जो कर्म क्षय करेगा मोक्ष पायेगा. (८) प्रश्नः भव्य अभव्य का अर्थ क्या ? उत्तरः भव्य मायने सिद्ध होने की योग्यतः वाले व अभव्य मायने सिद्ध होने को अयोग्य. (8) प्रश्नः भव्य जीवों में सिद्ध होने की योग्यता है तो कभी सप भव्य जीव मोत में चले जाना चाहिथे व ऐसा हो तो अभव्य जीव अकेले रह जायंगे या नहीं ? उत्तरः नहीं कभी ऐसा न होगा, राजा होने की योग्यता वाले सब राजा हो जाना चाहिये, ऐसा नियम नहीं है. (१०) प्रश्न: क्यों न हो कोई मिसाल देकर समझाईये ? उत्तरः जैसे मिट्टी व रेती इन दोनों में स्वभाव से ही भेद है कि मिट्टी में से घडावन सकता है मगर रेती में से नहीं बन सकता. इसही तरह भवी व अभवी में स्वभाव से ही ऐसे भेद हैं कि भवी जीवों कर्म से मुक्त हो सकते है अथवी जीवों नहीं. दुनियां की तमाम मिट्टी का घड़ा वन सकता है मगर जिस मिट्टी को कुंभार चाक आदि का योग मिल जाता है वही मिट्टी घडा रूप हो सकती है इस तरह जो भव्य जीवों को सुदेव सुगुरु व सुधर्म का योग मिल जाता है वे जी) सम्यगज्ञान

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