Book Title: Shalopayogi Jain Prashnottara 02
Author(s): Dharshi Gulabchand Sanghani
Publisher: Kamdar Zaverchand Jadhavji Ajmer

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Page 28
________________ (==) उत्तरः केवल दुःख ही दुःख है सुख कुछ भी नहि है उनको क्षेत्र वेदना, अन्योन्य कृत वेदना व परमाधामी कृत वेदना इतनी तो होती है कि तुमने से हृदय कंपने लग जाता है. (१४) प्रश्न: क्षेत्र वेदना कितने प्रकार की है ? उत्तरः दश प्रकार की १ क्षुधा २ तृषा ३ शीत ४ उष्ण ५. दाह ६ ज्वर ७ भय द शोक ६ खरज व १० परवशपना ये दश प्रकार की अनन्त क्षेत्र वेदना है, (१५) प्रश्न: अन्योऽन्य कृत वेदना मायने क्या ? : उत्तरः नारकी के जीव आपस आपस में लडते हैं व दांत और नाखून से एक दूसरे को बहोत ही दुःख देते हैं उसका नाम अन्योन्यकृत वेदना है. (१६) मनः परमाधामीकृत वेदना मायने क्या ? उत्तरः परमाधामी जाति के क्रूर देवताओं हैं वे 'देवताओं नारकी को छेदते हैं, भेदते हैं व बहोत ही दुख देते हैं . (१७) प्रश्न: उन देवताको परमाधामी किस वास्ते कहते हैं? उत्तरः परम + अधर्मी मायने बहोत पापी नीच जातके देवता होने से उनको परमाधामी कहते हैं. (१८) पश्चः परमाधामी देवताओं नारकी को दुःख क्यों देते हैं ?

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