Book Title: Shalopayogi Jain Prashnottara 02
Author(s): Dharshi Gulabchand Sanghani
Publisher: Kamdar Zaverchand Jadhavji Ajmer

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Page 21
________________ (८१) उदय से भोग नहीं भोग सकता है उसे भोगांतराय कर्म कहते हैं. (४२) प्रश्नः * उपभोगांतराय कर्म किसे कहते हैं? उत्तरः उपभोगकी सामग्री होते हुए भी जीव जि सके उदय से उपभोग नहीं भोग सकता है उसे उपभोगांतराय कर्म कहते हैं. (४३) प्रश्नः वीर्यातराय कर्म किसे कहते हैं? उत्तरः जिसके उदय से शक्ति होने पर भी (बल परा क्रम होते हुए भी ) अशक्तकी तरह जीव कुछ नहीं कर सकता है उसको वीर्यातराय कर्म कहते हैं. (४४) प्रश्नः कर्मकी व्याख्या संक्षिप्त से समझावो. उत्तरः हेतुओं के द्वारा जो जीवों से किये जावें उन्हे कर्म कहते हैं. (४५) प्रश्नः संसारी जीवों को कर्म वन्धन हैं और सिद्धके जीवों को नहीं इसका क्या कार उत्तरः कर्म बन्धन के हेतु अर्थात् कारण होवे तो कर्मवन्धन होता है ये हेतु संसारी जीवों को है और सिद्धं भगवानं को नहीं अतः सिद्ध भगवत को कर्म बन्धन भी नहीं है, • जहां कारण का अभाव होता है वहां कार्यका भी अभाव होता है. * आहार, तंबोल, फूल फल वगेरे जो एक वार भोगने में आवे उसको उपभोग कहते हैं.

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