Book Title: Shalopayogi Jain Prashnottara 02
Author(s): Dharshi Gulabchand Sanghani
Publisher: Kamdar Zaverchand Jadhavji Ajmer

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Page 14
________________ (=) वैसेही ज्ञानावरणीय कर्म के उदय से ज्ञान प्रगट होता नहीं. जितने अंशे ज्ञानावरणीय कर्म का क्षय अथवा उपशम होवे उतने ज्ञान प्रगट होता है 1, ( ३ ) प्रश्न: सिद्ध भगवंत को अनंत दर्शन देखने का गुण है और अपन को नहीं इसका क्या कारण है ? उत्तरः अपन को दर्शनावर्षीय कर्म कि जो राजा के द्वारपाल समान है वो बाधा डालता है और सिद्ध भगवंत ने उस कर्म का क्षय किया है । ( ४ ) प्रश्न: सिद्ध भगवंत को अनंत सुख है और अपन को नहीं इसका क्या कारण है ? -" उत्तरः अपन को वेदनीय कर्म कि जो मध से लिप्त खड्ग समान है वह शांता अशाता वेदन को देता है और सिद्ध भगवंत ने उस वेदनीय कर्म का क्षय किया है । ( ५ ) प्रश्न: अपन में क्रोध, मान, माया, लोभ आदि कषायें हैं और सिद्ध इसका क्या कारण ? भगवंत में नहीं है उत्तर: अपन मोहनीय कर्म कि जो मद्यपान समान बेहोश बनाने वाला है उसके वश में हैं और सिद्ध भगवंत ने मोहनीय कर्म का सर्वथा क्षय किया है । ६ ) प्रश्न: अपन को वृद्धावस्था और मृत्युका भय है और

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