Book Title: Shabdaratnamahodadhi Part 3
Author(s): Muktivijay, Ambalal P Shah
Publisher: Vijaynitisurishwarji Jain Pustakalaya Trust Ahmedabad

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Page 418
________________ सन्निबद्ध - सपदि ] सन्निबद्ध त्रि. (सम्+नि+बन्ध् + कर्मणि क्त) सारी शेते जंघायेस, जांघेल. शब्दरत्नमहोदधिः । सन्निबन्धन न (सम्+नि+बन्ध् + भावे ल्युट् ) सारी रीते जांघ, परिणाम, संजन्ध, असरार पशु. सन्निभ त्रि. (सम्+नि+भा+क) सरभुं समान, तुझ्य ठेवु. ( समासना अंते वपराय छे.) सन्निमग्न त्रि. ( सम् + न + मस्ज् + क्त) डूजेल, सूते. सत्रियुक्त त्रि. (सम्+नि+युज् + क्त) नीभेल, योभेस सन्यास पुं. (सम्+नि+अस्+घञ्) सारी रीते त्याग अश्वो, संन्यास आश्रम, चैत्र महिनो, ईडवु, छोउवु, અર્પણ કરવું, જટામાંસી વનસ્પતિ. सन्यासिता स्त्री. सन्यासित्व न. ( सन्यासिनः भावः तल्+टाप्-त्व) संन्यासी पशु. सन्यासिन् पुं. (सम्+नि+अस् + णिनि) त्यागी, संन्यासीज्ञेयः स नित्यसंन्यासी यो न द्वेष्टि न काङ्क्षतिभग० ५।३ । संन्यास आश्रममा रहेस, छोडनार, ફેંકી દેનાર, ત્યાગ કરનાર, અર્પણ કરનાર, ચૈત્ર મહિનામાં કરવાનું શિવનું એક વ્રત કરનાર. सन्निरोध पुं. (सम्+नि+रुध् + क्त) रोडा, खटाव, सप् (भ्वा. प. सक. सेट् सपति) षप् दुख सन्मान विघ्न, विघ्न दु. वु, पूभ रवी. सपक्ष पुं. ( समानः पक्षेण) निश्चित साध्या पक्ष ( त्रि. समानः पक्षो यस्य) समान पक्षवाणुं, तुझ्य३५, सरणुं, समान पांजीवाणु, पडजावाजु सपत्राकरण न., सपत्राकृति स्त्री. (सह पत्रेण पक्षेण सन्निविष्ट त्रि. (सम्+नि+ विश् + क्त) ९८४२, प्रवेश ४३. - ध्येयः सदा सवितृमण्डलमध्यवर्ती नारायणः सरसिजासनसन्निविष्टः - आदित्यहृदयः । पेठेस, छाजस थयेस, नलडनुं, पासेनुं. सन्निवेश पुं. (सम्+नि+ विश् + आधारे घञ्) नगर वगेरेनी जहार विहार भाटेनो प्रदेश- 'अहो ! सुलभानुकारः खलु वेधसो जगति निर्माणसन्निवेशः ' - कादम्बरी सारी राते स्थिति अरवी, रहेवु, बेसाउवु. -क्रियतां समाजसंनिवेशः-उत्तम० ७/- अशून्यतीरां मुनिसंनिवेशैस्तमोऽपहनत्रीं तमसां वगाद्युरघु० १४ । ७६ । सपत्रः तथा क्रियते सपत्र + डाच् + कृ + ल्युट् / सपत्र + डाच् +कृ+ + क्तिन्) वीर, धणुं ४ दुःख हेवु, जराथी वींधवं. भेडेस लगाउस, वजगाउस. सन्नियोग पं. (सम्+नि+युज्+घञ्) नीभवु, योभ्वु, भेज, नियुक्ति, भेडवु लगाउवु, वनगाउवु सन्निरुद्ध त्रि. (सम्+नि+रुध् + क्त) रोडेस, अटडावेस, વિઘ્નરૂપ થયેલ. सनिवृत्त न. ( सम् + न + वृत् + क्त) पार्छु इरेल, जटडेल, रोडेल, बंध रेल, जंघ थयेस. सन्निवृत्ति स्त्रि. (सम्+नि+वृत+क्तिन्) पाछा इदुगतिस्त्वं वीतरागाणामभूयः सन्निवृत्तये - रघु० १० | २७ । खटाव, रोड, अंध अर, बंध थवु. सन्निहित त्रि. (सम्+नि+धा + क्त) सभीपमा रहेस, मां रहे पासे रहेस " अपि सन्निहितोऽत्र कुलपतिः”- शाकुं १ । पाडोशनुं, सारी रीते स्थापेस. सन्मार्ग पुं. (सन् चासौ मार्गश्च ) सारी रस्तो सारो भार्ग सत्र्यसन, सत्र्यस्त न. (सम्+नि+अस्+भावे ल्युट् / सम् +नि+अस् + भावे क्त) झेंडी हेवुं ते संन्यास, त्याग, अर्प Jain Education International २०५३ सन्न्यस्त त्रि. (सम्+नि+अस् + क्त) सारी राते भूल, स्यापेस, सारी रीते त्याग रेल, झेंडेस, योभेस, भेरेस, अर्पण पुरेल. सपत्राकृत त्रि. (सपत्र + डाच् + कृ + क्त) अत्यन्त व्यथा सपति स्त्री. (समानः पतिर्यस्याः) समान पतिवाजी ઉપજાવેલ, ઘણું દુઃખ દીધેલ, બાણથી વીંધેલ. પૃથ્વી વગેરે. सपत्न पुं. (सह एकार्थे पतति यतते, पत्+न सहस्य सः) शत्रु. सपत्नता स्त्री, सपत्नत्व न. ( सपत्नस्य भावः तल्+टाप्त्व) शत्रुप. सपत्नारि पुं. ( सपत्नस्य अरिरिव) भेड भतनो वांस. सपत्नी स्त्री. ( समानः पतिर्यस्याः ङीप् न च ) शोऽय. - या नीयते सपत्न्या प्रविश्य या भुजङ्गेन आर्यास० ૪૬૩। એક પતિવાળી સ્ત્રી, સમાન પતિવાળી પૃથ્વી वगेरे. सपत्नीक पुं. (पत्ल्या सहतिः स्वार्थे कप्) स्त्रीवाणी पुरुष. सपदि अव्य. (सह पद्यते, पद्+इन् सहस्य सः) खेऽहम, तत्क्षण, ४९ही सपदि मुकुलिताक्षी रुद्रसंरम्भभीत्याकुमा० ३ । ७६ । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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