Book Title: Shabdaratnamahodadhi Part 3
Author(s): Muktivijay, Ambalal P Shah
Publisher: Vijaynitisurishwarji Jain Pustakalaya Trust Ahmedabad
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२१२२ शब्दरत्नमहोदधिः।
[सुपुत्रिन्-सुफल सुपुत्रिन त्रि. (सुपुत्र+अस्त्यर्थे इनि) स२॥ पुत्रवाणु. | सुप्रतिष्ठित पुं. (सु+प्रति+स्था+क्त) ५२k 3. सुपुत्री स्त्री. (सुष्ठु पुत्री) सारी पुत्री..
सुप्रतीक पुं. (शोभनाः प्रतीकाः यस्य) ६२.39नो सुपुष्करा स्त्री. (सुष्ठु पुष्करमस्याः अच्+टाप्) स्थल हि॥४, शिव, महेव.
પદ્મિની, જમીન ઉપર થનાર કમળનો વેલો. सुप्रतीक त्रि. (सुष्ठु प्रतीकं यस्य) सुं४२ uauj. सुपुष्प न. (सुष्ठु पुष्यं यस्य) सर्विानुदूस, प्रपौ५४२.5,
(न. शोभनं प्रतीकम्) सुं६२ मंगा · मदपटुनिजमावास्य, ३, स्त्रीमान २४.
दद्भिर्बोधितो राजहंसैः । सुरगज इव गाङ्गं सैकतं सुपुष्प न. (सुष्ठु पुष्पम्) साई स- सुपुष्पराकीर्ण
सुप्रतीकः-रघु ५।७५। __कुसुमधनुषी मन्दिरमहो' - श्यामास्तवः ।
सुप्रभ त्रि. (सुष्ठु प्रभा यस्य) सारी अन्तिवाणु. सुपुष्पक पुं. (सुष्ठु पुष्पं यस्य कप्) मंह.२वृक्ष..
सुप्रभा स्त्री. (सुष्ठु प्रभा) सारी अन्ति- सुप्रभा पद्मरागाभा सुपुष्पिका स्त्री. (शोभनानि पुष्पाणि यस्याः कप्+टाप्)
वारुण्यां दिशि संस्थिता -तन्त्रसारः । अत्यन्त न्ति, પાટલા વનસ્પતિ. सुपुष्पी स्त्री. (सुष्ठु शोभनानि पुष्पाणि यस्याः डोष्)
અગ્નિની એક જીભ, વાકુચી વનસ્પતિ, ઉજ્વળ ધોળી અપરાજિતા વનસ્પતિ, સુવા, વરિયાળી, દ્રોણ
તેજ, એક સરસ્વતી નદી. पुष्पी, ७५(३७, 31.
सुप्रभात न. (सुष्ठु प्रभातम्) सा. प्रात:510- दिष्ट्या सुपूर पुं. (सुष्ठु पूर्यते, सू+पूर्+क) 40..
सुप्रभातमद्य यदयं देवो दृष्टः- उत्तर० ६। प्रातःणे. सुपूरक पुं. (सुष्ठु पूरयति, पूर्+ण्वुल्) मे तनु
मावा योग्य मांगलि वाय. (त्रि. सुष्ठु प्रभातः) 3-45वृक्ष.
સારી રીતે ચળકેલું. सुप्त न. (स्वप्+ भावे क्त-संप्रसारणम्) ip.j, सूतेj, सुप्रयुक्त न., त्रि. (सु+प्र+युज्+क्त) सारी रात -न हि सुप्तस्य सिंहस्य प्रविशन्ति मुखे मृगाः-हितो० પ્રયોગ કરેલ, સારી રીતે યોજેલ, જોડેલ. प्र० ३६। -क्षुधितस्तृषितः कामी विद्यार्थीकृषिकारकः । सुप्रयुक्तविशिख, सुप्रयुक्तशर, सुप्रयोगविशिख,
भण्डारी च प्रवासी च सप्त सुप्तान् प्रबोधयेत् । सुप्रयोगशर पुं. (सुष्ठु प्रयुक्तः निक्षेपो यस्य, तादृशो सुप्तघातक त्रि. (सुप्तमपि हन्ति, हन्+ण्वुल्) धात.डी. विशिखो यस्य/सुप्रयुक्तः शरो यस्य /सुष्टु -सूतदान भा२२.
साध्यसाधनक्षमत्वात् शोभनः प्रयोगो निक्षेपो यस्य सुप्तजन पुं. (सुप्तो जनो यत्र, सुप्तश्चासौ जनश्च वा)
ताद्दशः विशिखो यस्य/सुप्रयोगः शरो यस्य) ॐ५थी. અડધી રાત, સૂતેલો માણસ, ઊંઘેલો લોક.
બાણ ફેંકનાર, બાણ ફેંકવાના અભ્યાસમાં કુશળ. सुप्तज्ञान न. (सुप्ते निद्रावस्थायां ज्ञानम्) स्वप्न, सम..... सुप्रलाप पुं. (सुष्ठु प्रलापः) सामान.९८, सा क्यन.. सप्ति स्त्री. (स्वप+भावे क्तिन्) निद्रा- सुप्तिमूच्छोपतापेषु सप्रलापिन त्रि. (सप्रलाप+ अस्त्यर्थे इनि) सारे वयन प्राणायनविधाततः । नेहतेऽहमिति ज्ञानं मृत्युप्रज्वार
બોલનાર. योरपि-भाग० ४।२९।७१। ध, सूई ४Qत, स्वप्न,
सुप्रसन्न पुं. (सु+प्रसिद्+क्त) मुझेर. (त्रि. सुतरां स्पर्श, विश्वास..
प्रसन्नः) सारी रात प्रसन्न, अत्यन्त प्रसन्न. सुप्रतिभ त्रि. (सुष्ठु प्रतिभा यस्य) 6%84 बुद्धिवाj,
सुप्रसन्नक पुं. (सुप्रसन्न+संज्ञा. कन्) 'कृष्णार्जुन' , સારી બુદ્ધિવાળું.
मो. सुप्रतिभा स्त्री. (सुष्ठु प्रतिभा यस्याः) 6°५७ बुद्धि, ६८३, महि.
सुप्रसन्नता स्त्री., सुप्रसनत्व न. (सुपसन्नस्य भावः सुप्रतिष्ठ, सुप्रतिष्ठित त्रि. (सुष्ठु प्रतिष्ठा यस्य/
तल्+टाप्-त्व) सारी रात प्रसन५४, अत्यन्त सु+प्रति+स्था+क्त) सारी प्रतिष्ठवणु, सारी ते.
प्रसन५. વખણાયેલ, પ્રસિદ્ધ, સારી રીતે પ્રતિષ્ઠા કરેલ-સ્થાપેલ.
सुप्रसाद पुं. (सुष्ठु प्रसादो यस्य, सुष्ठु प्रसादो वा) सुप्रतिष्ठा स्त्री. (सुष्ठु प्रतिष्ठा) प्रशंसा, प्रसिद्ध, qugu,
શિવ, સુંદર પ્રસન્નતા, અત્યન્ત પ્રસન્નપણું. ५iय सक्षन। य२५वाणो छन्६. 610 -व्रजसुभ्रुवो | सुफल पुं. (सुष्ठु फलं यस्य) हम, 40२, मग, ४२१५, विलसत्कलाः अभवन् प्रिवा सुवैरिणः- छन्दोमञ्जरी ।। 306. (त्रि.) सुं८२ वाणु, घi smauj.
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