Book Title: Shabdaratnamahodadhi Part 3
Author(s): Muktivijay, Ambalal P Shah
Publisher: Vijaynitisurishwarji Jain Pustakalaya Trust Ahmedabad
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सै-सो]
शब्दरत्नमहोदधिः।
२१४१
सै 'पै' धातु दुआओ, क्षाए। थ, नष्ट थर्बु, १२मा य. | सैन्धी (स्त्री.) तार ३नी २स-ती. सैंह त्रि. (सिंहस्येदं, सिंह+अण्) सिंडनु सिंह संधी सैन्य न. (सेनायाः संघः ष्यञ्) मणे हाथी-घो.31 ___-द्युतिं सैहीं किं श्वा धृतकनकमालोऽपि लभते ।। વગેરેનું લશ્કર, સેનાનો સમુદાય, લશ્કરી સમુદાય - सैंहही स्त्री. (सिंहले देशे भवा, अण्+ङीप्) सिंडस- स प्रतस्येऽरिनाशाय हरिसैन्यैरनुद्रुतः-रघु० १२।६७। દેશમાં થનારી પીપર.
सेन. (पुं. सेनायां समवैति, ज्य) १२४२ सिus, सैहिक, सैहिकेय पुं. (सिंहिकायां भवः, ठक्/सिंहिकायां | सैनिड, ६२४२. हाथी-घोस वगेरे. ___ भवः ढक्) राग्रह (भातृ५२४ नाम.)
सैन्यपति, सैन्याधिप, सैन्याधिपति पुं. (सैन्यस्य सैकत न. (सिकताः सन्त्यत्र, अण) पुष्ठ ३daunो पतिः/सैन्यस्य अधिपः/सैन्यस्य अधिपतिः) सेनापति. नही ३ नारी - तोयस्यैवाप्रतिहतरयः सैकतं सैमन्तिक पुं. (सीमन्त+ठञ्) सिंदूर. सेतुमोघः-उत्तर० ३।१६। -सुरगज इव गाङ्गं सैकतं | सैरन्ध्री, सरिन्धी स्त्री. (सीरं हलं धरति, धृ+मूल० क
सुप्रतीकः -रघु० ५।७५ । पुष्टण रेतीवाणु.. मुम् च सीरन्ध्रः कृषकस्तस्येदं शिल्प कर्म अण्+ सैकतिक पुं. (सह एकतया सैकतं, तदस्यास्ति ष्ठन्) | तदस्यास्ति अच्+गौरा. ङीष्/सैरिन्ध्री+पृषो.) ५.२४
संन्यस्त. संन्यास.क्षप.साध. (त्रि. सैकत+ठन) ઘેર રહેનારી પોતાને સ્વાધીન એવી કારીગર સ્ત્રીसजवाणु, संख्या 9वना२. (न.) मंगलसूत्र. मे. सतनी सी. -सैरन्धं वागुरावृत्तिं सूते सैकतेष्ट न. (सैकतं स्थानमिष्टं यस्य) मा. दस्युरयोगवे- मनु० १०॥३२।। (त्रि. सैकतं स्थानं इष्टं यस्य) ३ताण प्रशने । सैरिक पुं. (सीर+ठञ्) डूत, जयनारी ६. प्रय होय ते.
| सैरिभ पुं. (सीरे हले तद्वहने इभ इव शूरत्वात् शाक. सैतवाहिनी स्त्री. (सितायाः शर्करायाः अयम् अण् | स्वार्थेऽण्) ५.32. अवमानित इव कुलीनो दीर्धं निः
सैतो मधुररसस्तं वहति, व+णिनि डीप्) all ___ श्वसिति सैरिभिः- मृच्छ० ४। नही.
सैरिभी स्त्री. (सैरिभ+स्त्रियां जाति. ङीष्) भंस. सैद्धान्तिक त्रि. (सिद्धान्तं वेत्ति, विद्+ठक्) सिद्धान्त ने. सैरीय, सैरीयक, सैरेय, सैरेयक (सीरस्येदं, सैरं જાણનાર.
हलाकारमहंत, सैर+छ/सैरीय एव, स्वार्थे संज्ञायां सैनापत्य न. (सेनापतेर्भावः कर्म वा ष्यञ्) सेनापति, वा कन/सैरं सीराकारमर्हति ढक/सैरेय+ स्वार्थ સેનાપતિપદ.
क) जीजी वनस्पति. सैनिक पुं. (सेनायां समवैति सेना+ठक्) मणेता डाथी- | सैवाल न. सैवालक पुं. (सेवायै मीनादीनामुपभोगाय घोस 47३, ५१४३२. सिपा. (त्रि. सेनाया इदं | अलति पर्याप्नोति अच्+सेवालं ततः स्वार्थे अण्/ ठक्) १२४२नु, ११४२ संबंधी....
सैवाल+स्वार्थे क) शेवाण. सैन्धव न. (सिन्धुनदीसमीपे देशे भवम् वा अण्) | सैसक त्रि. (सीसकस्येदं अण्) सासानु, सीसा संबन्धी. सिंघासू, सैन्य संबंधी (पुं. सिन्धुरभिजनोऽस्य. सो 'षो' धातु मो. (दिवादि० पर० स्यति)= वध सिन्धु +अण) मे तनो धो. त्रि. (सिन्धोरिदं, ४२वी, नष्ट ७२j, पूरे ७२. अव+स्यति-अवस्यति सिन्धु+अण्) समुद्रनु, समुद्र संबंधी, सिन्धु देशमा -समाप्त पूरे २j. -यूपयत्यवसिते क्रियाविधौ-रघु० होना२-थना२.
११।३७। -अवसितमण्डनाऽसि- शकुं० ४। सैन्धवक त्रि. (सैन्धव+वुञ्) सिंधु देशन 5 दुःvl. अधि+ अव+स्यति-अध्यवस्यति मानने ६८ ४२jથયેલ માનવી.
कथमिदानी दुर्वचनादध्यवसितं देवेन-उत्तर० १। सैन्धवखिल न. (सैन्धवमेव खिलम्) सश्यहानंह परि+अव+ स्यति-पर्यवस्यति -पूर २, समाप्त __ ५२मात्मा, ५२भेश्वर.
४२-यई ४- एष एव समुच्चयः सद्योगेऽसद्योगे सैन्धवघन पुं. (सैन्धवस्य घनः) सिंघासूनो दु:32. सदसद्योगे च पर्यवस्यतीति न पृथक् लक्ष्यतेसैन्धवी स्रो. (सिन्धुदेशे भवा, सिन्धु+अण्+ङीप्) काव्य० १०। वि+अव+स्थति-व्यवस्यति -२४२, સિધુ દેશની ઘોડી, સિંધી ઘોડી.
હાથ-પગ કામે લગાડવા કોશિશ કરવી, પ્રયત્ન કરવો,
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